स्वामी समाज : SWAMI SAMAJ
Monday, August 13, 2012
Wednesday, March 21, 2012
इवेंट मैनेजमेंट : तेजी से उभरता कैरियर
हम आए दिन बड़े-बड़े आयोजनों की खबरें
पढ़ते रहते हैं। इस तरह के भव्य आयोजनों की व्यवस्था करना ही इवेंट मैनेजमेंट कहलाता
है। इन आयोजनों की सफलता के पीछे जिन लोगों की कड़ी मेहनत होती है, वे इवेंट मैनेजर
कहे जाते हैं।
इवेंट मैनेजर किसी भी आयोजन के आरंभ से
अंत तक होने वाले हर कार्यक्रम, हर पड़ाव का सुचारु संचालन करते हैं। इवेंट
मैनेजमेंट के अंतर्गत फैशन शो, संगीत समारोह, विवाह समारोह, थीम पार्टी, प्रदर्शनी,
कॉर्पोरेट सेमिनार, प्रोडक्ट लॉन्चिंग तथा फिल्मों के प्रीमियर आदि प्रोग्राम आते
हैं।
Monday, March 12, 2012
रंग खेलने में जल का क्या काम मन की तरंगें ही काफी हैं
भारत में
त्योहारों की रचना बड़े शानदार ढंग से की गई है। हमने रंगों को भी त्योहार से जोड़
दिया है। जिंदगी रंगीन होनी चाहिए, इस पंक्ति
का अर्थ है जीवन में सुख और शांति दोनों एक साथ हो। होली के बाद रंगपंचमी पर
जलविहीन रंग एक-दूसरे को लगाने का बड़ा आध्यात्मिक अर्थ है।
हम अपने
हाथों से किसी को रंग लगा रहे हों और कोई दूसरा जब हमें रंग लगा रहा हो, तब उस अबीर-गुलाल के ‘कलर’ पर मत टिक जाइए, क्योंकि
कलर केवल एक शरीर है। इस शरीर के भीतर की आत्मा को समझते हुए रंग लगाएं और लगवाएं।
इसे यूं समझ लें कि हमारे यहां भोजन की शुद्धि पर बड़ा जोर दिया गया है। इसीलिए
कहा जाता है हर किसी के हाथ का बना हुआ भोजन न करें। घर की माता-बहन जब भोजन बनाकर
खिलाती है तो उनके हाथों की संवेदना और प्रेम तरंगों के रूप में भोजन में उतरते
हैं। थोड़े भी संवेदनशील व्यक्ति इसका असर महसूस भी कर सकेंगे।
आप बाहर
अच्छे से अच्छे महंगे स्थान का भोजन कर लें, लेकिन
गहराई से महसूस करें तो पाएंगे कि इसमें कोई न कोई कमी है। यह भोजन कुछ इस तरह का
होता है, जैसे निष्प्राण देह को सोलह श्रंगार करा दिया गया
है। इसीलिए बाहर का भोजन केवल शरीर का भोजन बनकर रह जाता है, आत्मा अतृप्त ही रहती है। होली हो या रंगपंचमी, इस दिन रंगों को हाथ में लेते समय यही भाव रखिए कि
आपकी आत्मा से होती हुई तरंगें हथेलियों से गुजरकर रंग के कणों में उतर रही हैं और
प्रेम का सेतु एक-दूसरे के बीच बना रहे। फिर इसमें जल का क्या काम, मन की तरंगें ही काफी हैं।
Wednesday, March 7, 2012
धर्मग्रंथों से सदाचरण ग्रहण करने की शिक्षा दी महात्मा ने
एक महात्मा बड़े ज्ञानी थे। वे
प्राय: अपने शिष्यों को रामायण, महाभारत
और नीति ग्रंथों की अच्छी बातें बताकर उन्हें अपने आचरण में उतारने का आग्रह करते
थे। प्रतिदिन संध्या को वे प्रवचन करते और श्रोताओं को इन धर्मग्रंथों की कथाएं व
दृष्टांत सुनाकर उनमें सदाचरण जाग्रत करने का प्रयास करते थे। स्वयं महात्माजी का
आचरण भी तदनुकूल ही था।
वे कंदमूल खाते, कभी किसी वस्तु की इच्छा न करते थे और संग्रह में उनकी कदापि रुचि नहीं थी। यदि कोई शिष्य अथवा श्रोता श्रद्धापूर्वक उन्हें कुछ भेंट करता तो वे तत्क्षण उसे किसी जरूरतमंद को दान कर देते। प्रवचन के पश्चात लोगों के प्रश्नों व जिज्ञासाओं का भी महात्माजी समाधान करते।
वे प्राय: रामायण आदि ग्रंथों से शिक्षा ग्रहण करने की बात कहते थे। एक दिन किसी व्यक्ति ने उनसे प्रश्न किया - ‘महात्माजी! रामायण को सही माना जाए या गलत?’ उन्होंने उत्तर दिया - ‘वत्स! जब रामायण की रचना हुई थी, तब मैं नहीं था। रामजी वन में विचरण कर रहे थे, तब भी मेरा अता-पता नहीं था। इसलिए मैं बता नहीं सकता कि रामायण सही है या गलत। मैं तो सिर्फ इतना बता सकता हूं कि इसके अध्ययन एवं शिक्षा से मैं सुधरकर इस स्थिति में हूं। चाहो तो तुम भी इसका प्रयोग कर अपना जीवन बेहतर बना सकते हो।’
वे कंदमूल खाते, कभी किसी वस्तु की इच्छा न करते थे और संग्रह में उनकी कदापि रुचि नहीं थी। यदि कोई शिष्य अथवा श्रोता श्रद्धापूर्वक उन्हें कुछ भेंट करता तो वे तत्क्षण उसे किसी जरूरतमंद को दान कर देते। प्रवचन के पश्चात लोगों के प्रश्नों व जिज्ञासाओं का भी महात्माजी समाधान करते।
वे प्राय: रामायण आदि ग्रंथों से शिक्षा ग्रहण करने की बात कहते थे। एक दिन किसी व्यक्ति ने उनसे प्रश्न किया - ‘महात्माजी! रामायण को सही माना जाए या गलत?’ उन्होंने उत्तर दिया - ‘वत्स! जब रामायण की रचना हुई थी, तब मैं नहीं था। रामजी वन में विचरण कर रहे थे, तब भी मेरा अता-पता नहीं था। इसलिए मैं बता नहीं सकता कि रामायण सही है या गलत। मैं तो सिर्फ इतना बता सकता हूं कि इसके अध्ययन एवं शिक्षा से मैं सुधरकर इस स्थिति में हूं। चाहो तो तुम भी इसका प्रयोग कर अपना जीवन बेहतर बना सकते हो।’
सार यह है कि धर्मग्रंथ व
नीतिग्रंथ तर्क का विषय नहीं होते। उनमें सतोमुखी जीवन के तत्व होते हैं। अत: उनसे
अपने जीवन को सार्थकता देने की शिक्षा ग्रहण करनी चाहिए, न कि उन्हें तर्क की कसौटी पर कसना चाहिए।
Sunday, March 4, 2012
वैष्णव धर्म / वैष्णव सम्प्रदाय / भागवत धर्म
वैष्णव धर्म या वैष्णव सम्प्रदाय का प्राचीन नाम
भागवत धर्म या पांचरात्र मत है। इस सम्प्रदाय के प्रधान उपास्य देव वासुदेव हैं, जिन्हें
छ: गुणों ज्ञान, शक्ति, बल, वीर्य, ऐश्वर्य और तेज से सम्पन्न होने के कारण भगवान या 'भगवत' कहा गया है और भगवत के उपासक भागवत कहलाते हैं। इस सम्प्रदाय की
पांचरात्र संज्ञा के सम्बन्ध में अनेक मत व्यक्त किये गये हैं।
व्यस्तता से थोड़ा वक्त प्रार्थना के लिए निकाल कर तो देखिए
कार्यस्थल
और धर्मस्थल दोनों में ऊपरी तौर पर फर्क है। कार्यस्थल पर आप अपने हिस्से का कमाने
जाते हैं, धर्मस्थल पर परमात्मा के अधिकार का उसे देने जाते
हैं। कार्यस्थल हमें धन देता है और पूजास्थल धर्म देते हैं। कार्यस्थल पर ज्यादा
समय अशांति, कम समय शांति रहेगी तथा धर्मस्थल पर अधिक समय शांति, कम समय अशांति रहेगी। हम जब अपने ऑफिस, दुकान, संस्थान में कार्यरत रहते हैं, तो अपने काम को समय और लक्ष्य से साध कर चलते हैं। अच्छे-बुरे लोगों से सामना होता ही रहता है। अच्छे लोग तो खैर
कुछ देकर ही जाते हैं, लेकिन चालाक, छल-कपट वालों से भी सामना होगा। ऐसे समय हमें भी
सुरक्षा की तैयारी करना होगी। एक प्रयोग करते रहें। अपने प्रोफेशनल डिसीप्लिन और
कमिटमेंट को जरा परमात्मा की ओर भी मोड़िए। आपके कार्य की समयावधि जो भी हो, उसमें से कुछ समय प्रार्थना के लिए रिजर्व रखिए।
अपने
कार्यस्थल पर प्रार्थना के माध्यम से परमात्मा को याद करना हमारे प्रोफेशनल
नज़रियें को और बढा देगा | कामकाज में प्रार्थना ईश्वर से मीटिंग और
एपांइटमेंट दोनों हैं। हम अपने भीतर के नकारात्मक व्यक्तित्व को स्वीकार नहीं कर
पाते हैं, यही व्यक्तित्व कार्यस्थल पर और सक्रिय रहता है।
थोड़ी सी देर हम प्रार्थना से जुड़ते हैं। हमारे भीतर जाग्रति, सतर्कता, विश्वास, जुनून, प्रतिबद्धता और आनंद बहने लगेगा।
इसके बाद हम जो भी बोलेंगे, वे
शब्द प्रभावशाली और दूसरों के लिए स्वीकार करने योग्य होंगे। 8-10 घंटे काम करते हुए हम कुछ समय चाय-नाश्ता, भोजन, चर्चा में जरूर बिताते हैं। इसी में से थोड़ा वक्त
प्रार्थना को दे दीजिए। प्रार्थना का रूप क्या रखेंगे, यह आप अपनी स्थिति पर निर्धारित कर लें, पर प्रार्थना करें जरूर। यहीं से आप प्रतिदिन विजय यात्रा
करेंगे। तारीफ पचाना, उद्देश्य छिपाना, योजनाएं
बनाना और प्रगति सही वक्त पर दिखाना, ये सब युद्ध के पहले ही विजय की घोषणा के लक्षण
हैं। काम के दौरान प्रार्थना से जुड़कर ये खूबियां स्वत: आएंगी।
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