Sunday, March 4, 2012

वैष्णव धर्म / वैष्णव सम्प्रदाय / भागवत धर्म

वैष्णव धर्म या वैष्णव सम्प्रदाय का प्राचीन नाम भागवत धर्म या पांचरात्र मत है। इस सम्प्रदाय के प्रधान उपास्य देव वासुदेव हैं, जिन्हें छ: गुणों ज्ञान, शक्ति, बल, वीर्य, ऐश्वर्य और तेज से सम्पन्न होने के कारण भगवान या 'भगवत' कहा गया है और भगवत के उपासक भागवत कहलाते हैं। इस सम्प्रदाय की पांचरात्र संज्ञा के सम्बन्ध में अनेक मत व्यक्त किये गये हैं।

व्यस्तता से थोड़ा वक्त प्रार्थना के लिए निकाल कर तो देखिए

कार्यस्थल और धर्मस्थल दोनों में ऊपरी तौर पर फर्क है। कार्यस्थल पर आप अपने हिस्से का कमाने जाते हैं, धर्मस्थल पर परमात्मा के अधिकार का उसे देने जाते हैं। कार्यस्थल हमें धन देता है और पूजास्थल धर्म देते हैं। कार्यस्थल पर ज्यादा समय अशांति, कम समय शांति रहेगी तथा धर्मस्थल पर अधिक समय शांति, कम समय अशांति रहेगी। हम जब अपने ऑफिस, दुकान, संस्थान में कार्यरत रहते हैं, तो अपने काम को समय और लक्ष्य से साध कर चलते हैं। अच्छे-बुरे लोगों से सामना होता ही रहता है। अच्छे लोग तो खैर कुछ देकर ही जाते हैं, लेकिन चालाक, छल-कपट वालों से भी सामना होगा। ऐसे समय हमें भी सुरक्षा की तैयारी करना होगी। एक प्रयोग करते रहें। अपने प्रोफेशनल डिसीप्लिन और कमिटमेंट को जरा परमात्मा की ओर भी मोड़िए। आपके कार्य की समयावधि जो भी हो, उसमें से कुछ समय प्रार्थना के लिए रिजर्व रखिए। 

अपने कार्यस्थल पर प्रार्थना के माध्यम से परमात्मा को याद करना हमारे प्रोफेशनल नज़रियें को और बढा  देगा | कामकाज में प्रार्थना ईश्वर से मीटिंग और एपांइटमेंट दोनों हैं। हम अपने भीतर के नकारात्मक व्यक्तित्व को स्वीकार नहीं कर पाते हैं, यही व्यक्तित्व कार्यस्थल पर और सक्रिय रहता है। थोड़ी सी देर हम प्रार्थना से जुड़ते हैं। हमारे भीतर जाग्रति, सतर्कता, विश्वास, जुनून, प्रतिबद्धता और आनंद बहने लगेगा। 

इसके बाद हम जो भी बोलेंगे, वे शब्द प्रभावशाली और दूसरों के लिए स्वीकार करने योग्य होंगे। 8-10 घंटे काम करते हुए हम कुछ समय चाय-नाश्ता, भोजन, चर्चा में जरूर बिताते हैं। इसी में से थोड़ा वक्त प्रार्थना को दे दीजिए। प्रार्थना का रूप क्या रखेंगे, यह आप अपनी स्थिति पर निर्धारित कर लें, पर प्रार्थना करें जरूर। यहीं से आप प्रतिदिन विजय यात्रा करेंगे। तारीफ पचाना, उद्देश्य छिपाना, योजनाएं बनाना और प्रगति सही वक्त पर दिखाना, ये सब युद्ध के पहले ही विजय की घोषणा के लक्षण हैं। काम के दौरान प्रार्थना से जुड़कर ये खूबियां स्वत: आएंगी।