Monday, October 31, 2011

वैष्णव धर्म / वैष्णव सम्प्रदाय / भागवत धर्म



वैष्णव धर्म या वैष्णव सम्प्रदाय का प्राचीन नाम भागवत धर्म या पांचरात्र मत है। इस सम्प्रदाय के प्रधान उपास्य देव वासुदेव हैं, जिन्हें छ: गुणों ज्ञान, शक्ति, बल, वीर्य, ऐश्वर्य और तेज से सम्पन्न होने के कारण भगवान या 'भगवत' कहा गया है और भगवत के उपासक भागवत कहलाते हैं। इस सम्प्रदाय की पांचरात्र संज्ञा के सम्बन्ध में अनेक मत व्यक्त किये गये हैं। 'महाभारत'[1] के अनुसार चार वेदों और सांख्ययोग के समावेश के कारण यह नारायणीय महापनिषद पांचरात्र कहलाता है। नारद पांचरात्र के अनुसार इसमें ब्रह्म, मुक्ति, भोग, योग और संसार–पाँच विषयों का 'रात्र' अर्थात ज्ञान होने के कारण यह पांचरात्र है। 'ईश्वरसंहिता', 'पाद्मतन्त', 'विष्णुसंहिता' और 'परमसंहिता' ने भी इसकी भिन्न-भिन्न प्रकार से व्याख्या की है। 'शतपथ ब्राह्मण'[2] के अनुसार सूत्र की पाँच रातों में इस धर्म की व्याख्या की गयी थी, इस कारण इसका नाम पांचरात्र पड़ा। इस धर्म के 'नारायणीय', ऐकान्तिक' और 'सात्वत' नाम भी प्रचलित रहे हैं।

Sunday, October 23, 2011

धनतेरस: इस यंत्र के पूजन से मिलेगी दुनिया की हर खुशी

कौन नहीं चाहता कि उसके पास अथाह धन-संपत्ति हो। उसे दुनिया के सारे ऐशो-आराम मिले। कभी किसी चीज की कमी न हो। अगर आप भी यही चाहते हैं तो इस चमत्कारी यंत्र के माध्यम से आपका यह सपना पूरा हो सकता है। यह चमत्कारी यंत्र है कुबेर यंत्र। स्वर्ण लाभ, रत्न लाभ, गड़े हुए धन का लाभ एवं पैतृक सम्पत्ति का लाभ चाहने वाले लोगों के लिए कुबेर यंत्र अत्यन्त सफलता दायक है। इस यंत्र के प्रभाव से अनेक मार्गों से धन आने लगता है एवं धन संचय भी होने लगता है। इस यंत्र की अचल प्रतिष्ठा होती है। धनतेरस(24 अक्टूबर, सोमवार) को इस यंत्र की स्थापना कर इसका पूजन करें।

यंत्र का उपयोग

विल्व-वृक्ष के नीचे बैठकर इस यंत्र को सामने रखकर कुबेर मंत्र को शुद्धता पूर्वक जप करने से यंत्र सिद्ध होता है तथा यंत्र सिद्ध होने के पश्चात इसे गल्ले या  तिजोरी में स्थापित किया जाता है। इसके स्थापना के पश्चात् दरिद्रता का नाश होकर, प्रचुर धन व यश की प्राप्ति होती है।

मंत्र

ऊँ यक्षाय कुबेराय वैश्रवणाय धन्य धन्याधिपतये धन धान्य समृद्धि में देहित दापय स्वाहा

इस प्रकार सजी थाली देखकर धन बरसाती हैं महालक्ष्मी

लक्ष्मी पूजन पूरे विधि-विधान से किया जाना अति आवश्यक है। तभी देवी लक्ष्मी की कृपा तुरंत ही प्राप्त होती है। पूजन के समय सबसे जरूरी है कि पूजा की थाली शास्त्रों के अनुसार सजाई जाए।

पूजा की थाली के संबंध में शास्त्रों में उल्लेख किया गया है कि लक्ष्मी पूजन में तीन थालियां सजानी चाहिए।

पहली थाली में 11 दीपक समान दूरी पर रखें कर सजाएं।

दूसरी थाली में पूजन सामग्री इस क्रम में सजाएं- सबसे पहले धानी (खील), बताशे, मिठाई, वस्त्र, आभूषण, चंदन का लेप, सिंदूर कुमकुम, सुपारी और थाली के बीच में पान रखें।

तीसरी थाली में इस क्रम में सामग्री सजाएं- सबसे पहले फूल, दूर्वा, चावल, लौंग, इलाइची, केसर-कपूर, हल्दी चूने का लेप, सुगंधित पदार्थ, धूप, अगरबत्ती, एक दीपक।

इस तरह थाली सजा कर लक्ष्मी पूजन करें। 

धनतेरस-सोम प्रदोष का दुर्लभ योग, मालामाल बना देगी इस मंत्र से शिव पूजा


जीवन में सुख, शांति और सौंदर्य की कामना है तो मन, वचन व कर्म में सत्य की मौजूदगी भी जरूरी है। शिव हो या शंकर हर स्वरूप व शब्द में भी शमन यानी सुख व शांति का भाव ही छुपा है। पौराणिक मान्यता है कि भगवान शंकर ने समुद्र मंथन से निकले घातक विष को पीकर जगत के दु:खों का शमन किया और इसी मंथन से ऐश्वर्य की देवी लक्ष्मी प्रकट हुई। 

सिर्फ एक दिन की सजावट बना देगी अमीर

आपको जान कर अजीब लगेगा कि एक ही दिन की सजावट आपको अमीर बना सकती है। लेकिन ये सच है कि अगर आप सिर्फ दिवाली के ही दिन वास्तु के अनुसार सजावट कर लें तो भी आप पर धनलक्ष्मी खुश हो जाएगी।



जानें कैसी सजावट बना देगी अमीर

- दीपावली के दिन सुबह घर के बाहर उत्तर दिशा में रंगोली बनानी चाहिए।

- वास्तु के अनुसार घर में पौछा लगाते समय नमक मिला कर पोंछा लगाएं।

- घर के परदें पिंक कलर के होने चाहिए।

- घर के डायनिंग हॉल में कांच के बाउल में पानी भर कर उसमें लाल फूल रखें।

- घर में दीपक लगाते समय इस बात का ध्यान रखें कि दीपक में थोड़े चावल और कुंकु  डाल कर रखें।

- घर के जिस कमरे में तिजोरी हो उस कमरे में लाल फूल बिछा कर रखें।

- तिजोरी वाले कमरे में पीले और पिंक रंग के परदें रखना चाहिए।

- दीपावली के दिन सुबह-शाम गुग्गल की धूप दें।

- घर की सजावट में पीले फूलों का उपयोग करें।

आपके घर में रहेगी लक्ष्मी, जब दीपावली पर करेंगे यह उपाय


हिंदू धर्म ग्रंथों के अनुसार दीपावली के दिन विधि-विधान से यदि लक्ष्मीजी की पूजा की जाए तो वे अति प्रसन्न होती हैं। इसके अलावा यदि दीपावली(26 अक्टूबर, बुधवार) के शुभ अवसर पर नीचे लिखे साधारण उपाय किए जाएं तो और भी श्रेष्ठ रहता है और घर में लक्ष्मी का स्थाई निवास हो जाता है। यह उपाय इस प्रकार हैं-

उपाय
1- दीपावली के दिन पीपल को प्रणाम करके एक पत्ता तोड़ लाएं और इसे पूजा स्थान पर रखें। इसके बाद जब शनिवार आए तो वह पत्ता पुन: पीपल को अर्पित कर दें और दूसरा पत्ता ले आएं। यह प्रक्रिया हर शनिवार को करें। इससे घर में लक्ष्मी की स्थाई निवास रहेगा और शनिदेव की प्रसन्न होंगे।
2- दीपावली पर मां लक्ष्मी को घर में बनी खीर या सफेद मिठाई को भोग लगाएं तो शुभ फल प्राप्त होता है।
3- दीपावली की रात 21 लाल हकीक पत्थर अपने धन स्थान(तिजोरी, लॉकर, अलमारी) पर से ऊसारकर घर के मध्य(ब्रह्म स्थान) पर गाढ़ दें।
4- दीपावली के दिन घर के पश्चिम में खुले स्थान पर पितरों के नाम से चौदह दीपक लगाएं।

दीपावली: बहीखाता, कुबेर, तुला व दीपमाला पूजन विधि


दीपावली पर बहीखाता पूजन, कुबेर पूजन, तुला पूजन तथा दीपमाला का पूजन भी किया जाता है। इनकी पूजन विधि इस प्रकार है-
                                                       
बहीखाता पूजन- बही, बसना तथा थैली में रोली या केसरयुक्त चंदन से स्वस्तिक का चिह्न बनाएं एवं थैली में पांच हल्दी की गांठें, धनिया, कमलगट्टा, अक्षत, दूर्वा और द्रव्य रखकर उसमें सरस्वती का पूजन करें। सर्वप्रथम सरस्वती का ध्यान इस प्रकार करें-

Wednesday, May 25, 2011

स्वामी रामानन्दाचार्य


स्वामी रामानंद़ को मध्यकालीन भक्ति आंदोलन का महान संत माना जाता है.उन्होंने रामभक्ति की धारा को समाज के निचले तबके तक पहुंचाया.वे पहले ऐसे आचार्य हुए जिन्होंने उत्तर भारत में भक्ति का प्रचार किया.उनके बारे में प्रचलित कहावत है कि -द्वविड़ भक्ति उपजौ-लायो रामानंद.यानि उत्तर भारत में भक्ति का प्रचार करने का श्रेय स्वामी रामानंद को जाता है.उन्होंने तत्कालीन समाज में ब्याप्त कुरीतियों जैसे छूयाछूत,ऊंच-नीच और जात-पात का विरोध किया .

Monday, May 23, 2011

भक्त धन्ना



धन्ना  एक ग्रामीण किसान का सीधा-सादा लड़का था। गाँव में आये हुए किसी पण्डित से भागवत की कथा सुनी थी। पण्डित जब सप्ताह पूरी करके, गाँव से दक्षिणा, माल-सामग्री लेकर घोड़े पर रवाना हो रहे थे तब धन्ना जाट ने घोड़े पर बैठे हुए पण्डित जी के पैर पकड़ेः
"महाराज ! आपने कहा कि ठाकुरजी की पूजा करने वाले का बेड़ा पार हो जाता है। जो ठाकुरजी की सेवा-पूजा नहीं करता वह इन्सान नहीं हैवान है। गुरु महाराज ! आप तो जा रहे हैं। मुझे ठाकुरजी की पूजा की विधि बताते जाइये।"

Sunday, May 15, 2011

विवाह के आठ रूप



कर्तव्य और जिम्मेदारियों के पैमाने पर ही इंसान की सही परख और पहचान होती है। इन दायित्वों को समझ और आगे बढ़कर आत्मविश्वास व सक्षमता के साथ पूरा करने पर इंसान पद, सम्मान, भरोसा, सहयोग और प्रेम पाकर जीवन को सफल बना सकता है। व्यावहारिक जीवन में जिम्मेदारियों के निर्वहन का ही समय होता है - गृहस्थ जीवन। आम भाषा में इसे घर बसाना और चलाना भी कहते हैं।

Friday, May 13, 2011

संकटनाशक हैं वीर हनुमान के मंत्र



हनुमान भक्ति की सबसे लोकप्रिय स्तुति श्री हनुमान चालीसा की चौपाई में श्री हनुमान के संकटमोचक रूप को बताते हुए लिखा गया है कि - 
संकट कटै मिटै सब पीरा। जो सुमिरै हनुमत बलबीरा।। 

Wednesday, May 11, 2011

भगवान के भोग में डाले जाते हैं तुलसी के पत्ते

भगवान को भोग लगे और तुलसी दल न हो तो भोग अधूरा ही माना जाता है। तुलसी को परंपरा से भोग में रखा जाता है क्योंकि शास्त्रों के अनुसार तुलसी को विष्णु जी की प्रिय मानी जाती है। शास्त्रों के अनुसार  तुलसी डालकर भोग लगाने पर चार भार चांदी व एक भार सोने के दान के बराबर पुण्य मिलता है और बिना तुलसी के भगवान भोग ग्रहण नहीं करते उसे अस्वीकार कर देते हैं। 

Tuesday, May 10, 2011

फिश एक्वेरियम



वर्तमान समय में घर की सजावट के लिए कई उपाय किए जाते हैं। फिश एक्वेरियम लगाकर भी घर की सुंदरता बढ़ाई जाती है। फिश एक्वेरियम सिर्फ घर की सुंदरता ही नहीं बढ़ाता बल्कि घर के वास्तु दोष को भी दूर करता है। फेंगशुई के अनुसार घर में फिश एक्वेरियम रखने से सुख-समृद्धि आती है। 

Monday, May 9, 2011

सोलह संस्कार





1.गर्भाधान
हमारे शास्त्रों में मान्य सोलह संस्कारों में गर्भाधान पहला है। गृहस्थ जीवन में प्रवेश के उपरान्त प्रथम क‌र्त्तव्य के रूप में इस संस्कार को मान्यता दी गई है।

Sunday, May 8, 2011

हिन्दू धर्म के संस्कार



सनातन अथवा हिन्दू धर्म की संस्कृति संस्कारों पर ही आधारित है। हमारे ऋषि-मुनियों ने मानव जीवन को पवित्र एवं मर्यादित बनाने के लिये संस्कारों का अविष्कार किया। धार्मिक ही नहीं वैज्ञानिक दृष्टि से भी इन संस्कारों का हमारे जीवन में विशेष महत्व है। भारतीय संस्कृति की महानता में इन संस्कारों का महती योगदान है।

Saturday, May 7, 2011

पर्व त्यौहार


पर्व त्यौहार
मई सन् 2011
व्रत एवं पर्व
1 मई: मासिक शिवरात्रि व्रत, अक्कलकोट के श्रीस्वामी समर्थ जी महाराज की महासमाधि तिथि (महाराष्ट्र), श्रमिक दिवस,

2 मई: श्राद्ध की अमावस, सोमवती अमावस्या पर्वकाल प्रात: 10.23 बजे से, सोमवारी व्रत (मिथिलांचल), पाक्षिक प्रतिक्रमण (श्वेत.जैन)

3 मई: स्नान-दान की वैशाखी अमावस्या, भौमवती अमावस, गंगा-स्नान करोड़ों सूर्यग्रहणतुल्य फलदायक, शुकदेव मुनि जयंती, पंचकोसी-पंचेशानि यात्रा पूर्ण (उज्जयिनी), सौर ऊर्जा दिवस, अन्तर्राष्ट्रीय प्रेस स्वतंत्रता दिवस



किसी आध्यात्मिक पुरुष या विशेष व्यक्ति को गरिमा प्रदान करने और सम्मान देने के लिए उसके नाम के आगे श्री लिखने का प्रचलन है। श्री की उत्पत्ति और अस्तित्व के संदर्भ में वेद, पुराण, उपनिषदों और किंवदंतियोंमें अलग-अलग व्याख्या दी गई है। कहीं लक्ष्मी को श्री कहा गया है, तो कहीं अलग-अलग होते हुए एक होने की बात कही गई है।

Friday, May 6, 2011

धरती पर वैकुंठ




छह मई को यमुनोत्रीधाम के कपाट खुलेंगे और इसी के साथ आरंभ हो जाएगी आस्था में पगीचारधाम यात्रा। उत्तरकाशी जिले में यमुनोत्रीसे शुरू होने वाली यह यात्रा गंगोत्री से केदारनाथ होते हुए बद्रीनाथ पहुंचकर विराम लेती है, जिसे श्रद्धालु भू-वैकुंठ यानी धरती का स्वर्ग भी कहते हैं.।

Wednesday, May 4, 2011

राम की है सीता



भगवती सीता श्रीरामचंद्र की शक्ति और राम-कथा की प्राण है। यद्यपि वैशाख मास के शुक्लपक्ष की नवमी तिथि को जानकी-जयंती मनाई जाती है, किंतु भारत के कुछ क्षेत्रों में फाल्गुन मास के कृष्णपक्ष की अष्टमी को सीता-जयंती के रूप में मान्यता प्राप्त है। ग्रंथ निर्णयसिंधुमें कल्पतरु नामक प्राचीन ग्रंथ का संदर्भ देते हुए लिखा है, फाल्गुनस्यचमासस्यकृष्णाष्टम्यांमहीपते।जाता दाशरथेपत्नी तस्मिन्नहनिजानकी., अर्थात् फाल्गुन-कृष्ण-अष्टमी के दिन श्रीरामचंद्र की धर्मपत्‍‌नी जनक नंदिनी जानकी प्रकट हुई थीं। इसीलिए इस तिथि को सीताष्टमीके नाम से जाना गया।

Tuesday, May 3, 2011

6 मई को करें यह उपाय


आवश्यकताओं और सुविधाओं के बढऩे के साथ-साथ हम चाहे जितना पैसा कमा ले, कम ही है। धन की बढ़ती जरूरत के लिए अतिरिक्त कार्य करना होता है। फिर भी आवश्यकताएं पूरी नहीं हो पाती। ऐसे में मेहनत के साथ-साथ धन की देवी लक्ष्मी की उपासना भी जाए तो व्यक्ति सभी ऐश्वर्य और सुख-शांति प्राप्त करता है।

Monday, May 2, 2011

बोलें यह मंत्र, सध जाएंगे सब काम


आज की व्यस्त जिंदगी में इंसान के पास काम, जिम्मेदारियों और जरूरतों को पूरा करने की उलझन में ईश्वर स्मरण के लिए वक्त निकालना मुश्किल है। हालांकि धर्मग्रंथों में लिखी बातें कर्म को पूजा का दर्जा देती हैं। किंतु कर्म के साथ-साथ ईश्वर भक्ति और कृपा को भी सफल जीवन का सूत्र भी माना गया है।

Sunday, May 1, 2011

दुर्भाग्य को सौभाग्य में बदलने वाले उपाय


हर इंसान अपने दुर्भाग्य से पीछा छुड़ाना चाहता है लेकिन दुर्भाग्य से पीछा छुड़ाना इतना आसान नहीं होता। क्योंकि जब समय बुरा होता है तो साया भी साथ छोड़ देता है। अगर आप चाहते हैं कि आपका दुर्भाग्य, सौभाग्य में बदल जाए तो नीचे लिखे उपाय करें। यह उपाय आपके दुर्भाग्य कौ सौभाग्य में बदल देंगे।

Saturday, April 30, 2011

याददाश्त बढानें के उपाय


आजकल अच्छा खान-पान न होने की वजह से याददाश्त का कमजोर होना एक आम समस्या बन गई है।हर आदमी अपनी भूलने की आदत से परेशान है, लेकिन अब आपको परेशान हो की आवश्यकता नहीं है क्योंकि आयुर्वेद में इस बीमारी को दूर करने के सरलतम उपाय बताए हैं।

Friday, April 29, 2011

रुद्राक्ष की महिमा

एक बार देवर्षि नारद ने भगवान नारायण से पूछा-“दयानिधान!रुद्राक्ष को श्रेष्ठ क्यों माना जाता है? इसकी क्या महिमा है? सभी के लिए यह पूजनीय क्यों है?रुद्राक्ष की महिमा को आप विस्तार से बताकर मेरी जिज्ञासा शांत करें।” देवर्षि नारद की बात सुनकर भगवान् नारायण बोले-“हे देवर्षि! प्राचीन समय में यही प्रश्न कार्तिकेय ने भगवान् महादेव से पूछा था। तब उन्होंने जो कुछ बताया था,वही मैं तुम्हें बताता हूँ:

Thursday, April 28, 2011

शिव प्रिय रुद्राक्ष

रुद्राक्ष भगवान शंकर का प्रिय आभूषण है। दीर्घायु प्रदान करने वाला तथा अकाल मृत्यु को समाप्त करने वाला है। यह जहाँ गृहस्थ व्यक्तियों के लिए अर्थ और काम को प्रदान करता है वहीं संन्यासियों के लिए धर्म और मोक्ष को देने वाला है। मनुष्य की अनेक शारीरिक और मानसिक व्याधियों को दूर करने वाला, मन को शांति प्रदान करने वाला तथा योगियों की कुंडलिनी जागृत करने में सहायक होता है।

Wednesday, April 27, 2011

रुद्राक्ष का महत्व


रुद्राक्ष धारयेद्बुध: के अनुसार ज्ञानी जनों को रुद्राक्ष धारण करना चाहिए। रुद्राक्ष को भगवान शिव की आंख कहा जाता है। त्रिपुर नामक दैत्य को मारने हेतु भगवान शंकर ने कालाग्निनामक शस्त्र जब धारण किया तभी अश्रु पात होने से रुद्राक्ष की उत्पत्ति बताई गयी है।

Tuesday, April 26, 2011

शादी में आ रही रूकावट दूर करे



रुद्राक्ष के बारे में हम सभी लोगों ने सुना होगा। यह भगवान शिव के आभूषण माना जाता है और ऐसी मान्यता है कि इसकी उत्पत्ति भगवा शंकर की आंसू से हुई है। रुद्राक्ष कई प्रकार का होता है। इस पर जितनी धारियां होती हैं वह रुद्राक्ष उतना मुखी कहलाता है। हर रुद्राक्ष की अपनी एक अलग विशेषता होती है, जैसे रुद्राक्ष में यदि बारह धारियां है तो वह बारहमुखी रुद्राक्ष कहलायेगा।

Monday, April 25, 2011

पति-पत्नी का रिश्ता



पति-पत्नी का रिश्ता बड़ा नाजुक होता है। छोटी सी गलतफहमी इस रिश्ते को तोड़ सकती है। कई बार ऐसा होता भी है। वर्तमान के समय काम का बोझ व दूसरी जिम्मेदारियों के चलते पति-पत्नी एक-दूसरे को समय नहीं दे पाते। ऐसे में उनके बीच दूरियां बढऩे लगती है और कई बार यह रिश्ता टूटने की कगार पर पहुंच जाता है।

Sunday, April 24, 2011

संकल्प और समर्पण



संकल्प और समर्पण। अगर अर्थ की दृष्टि से देखा जाए, तो दोनों ही विरोधाभासीबातें हैं। या तो आप संकल्प कर सकते हैं, या फिर समर्पण। जैसे युद्ध में सामने वाले ने हथियार छोड दिए, तो समझो कि समर्पण हो गया। जब तक लड रहे थे, तो संकल्प से लड रहे थे।

Saturday, April 23, 2011

6 मई का अद्भुत योग

हिंदू शास्त्रों के अनुसार वर्षभर में कई विशेष योग बनते हैं लेकिन 6 मई को एक महायोग बन रहा है। इस महायोग का नाम है अक्षय तृतीया। यह वर्ष में सिर्फ एक बार ही आता है। ज्योतिष के अनुसार इस दिन किए गए पुण्य कर्मों का अक्षय पुण्य प्राप्त होता है।

Friday, April 22, 2011

रत्ना


हर राशि का अपना रत्न होता है और कुंडली में राशि के स्वामी की शुभ अशुभ स्थिति का विचार करके रत्नों को पहनना चाहिए। रत्न को अँगूठी या लॉकेट में पहनना चाहिए। रत्नों को पहनते समय यह सावधानि रखें कि यह शरीर से सटा हुआ रहें। इससे रत्नों का प्रभाव दोगुना हो जाता है।

Thursday, April 21, 2011

आध्यात्मिक जीवन


आध्यात्मिक जीवन आत्मिक सुख का निश्चित हेतु है। अध्यात्मवाद वह दिव्य आधार है, जिस पर मनुष्य की आंतरिक तथा बाह्य दोनों प्रकार की उन्नतियां एवं समृतियां अवलंबित हैं। सांसारिक उपलब्धियां प्राप्त करने के लिए भी जिन परिश्रम, पुरुषार्थ, सहयोग, सहकारिता आदि गुणों की आवश्यकता होती है, वे सब आध्यात्मिक जीवन के ही अंग हैं।

Wednesday, April 20, 2011

दक्षिणावर्ती शंख



हिन्दू धर्म में पूजा स्थल पर शंख रखने की परंपरा है। शंख को बहुत ही पवित्र माना गया है। शंख कई प्रकार के होते हैं। साधारणत: मंदिर में रखे जाने वाले शंख उल्टे हाथ के तरफ  खुलते हैं और बाजार में आसानी से मिल जाते हैं जबकि

Tuesday, April 19, 2011

ॐ से मिलता है आत्मबल


टाइम मैगजीन में एक रिपोर्ट के अनुसार, मेडिकल सेंटर में हृदय रोगियों को ऑपरेशन से पहले एक मनोवैज्ञानिक प्रोग्राम से अवगत कराया जाता है, जिसमें अंगमर्दन,योग व ध्यान करने को कहा जाता है। अधिकतर रोगियों को सर्जरी से पहले ॐ का उच्चारण करने के लिए कहा जाता है। उनका तर्क था कि इससे वे तनावमुक्त हो जाते हैं और उनका मन शांत हो जाता है।

Monday, April 18, 2011

शंकर-सुवन मारुती नंदन




हनुमदुपासना कल्पद्रुमनामक प्राचीन ग्रंथ में लिखा है-

चैत्रमासिसितेपक्षेपौर्णमास्यांकुजेऽहनि।मौलीमेखलयायुक्तकौपीन परिधारक
अर्थात चैत्र मास के शुक्लपक्ष में मंगलवार और पूर्णिमा के संयोग की बेला में मूंज की मेखला से युक्त लंगोटी पहने तथा यज्ञोपवीत धारण किए हुए हनुमानजी का आविर्भाव हुआ।

Sunday, April 17, 2011

आप और तिल



माथे पर---------                                   बलवान हो
ठुड्डी पर--------                                   स्त्री से प्रेम न रहे 
दोनों बांहों के बीच--                             यात्रा होती रहे

मौन



महान संत महर्षि रमण मौन रहते हुए भी अपने पास आने वालों की सूक्ष्म से सूक्ष्म शंकाओं का समाधान कर देते थे। महात्मा गांधी सप्ताह में एक दिन मौन रहा करते थे। मौन आंतरिक आनंद लुटाता है। यह हमारी आत्मा की आवाज है। इसकी साधना से हमें वे सभी सिद्धियां मिल जाती हैं, जो अन्य कठिन योग साधनाओं से भी प्राप्त नहीं हो पाती हैं।
वाणी चार प्रकार की होती है। नाभि में परावाणी, हृदय में पश्यंति,कंठ में मध्यमा वाणी और मुख में वैखरी वाणी निवास करती है। हम शब्दों की उत्पत्ति परावाणीमें करते हैं, लेकिन जब शब्द स्थूल रूप धारण करता है, तब मुख में स्थित वैखरी वाणी द्वारा बाहर निकलता है। इनमें परा और पश्यंतिसूक्ष्म तथा मध्यमा व वैखरी स्थूल है। अनावश्यक वाणी को अपने मुंह से नहीं निकालना और आवश्यक कथन में भी वाणी का संयम हमारे लिए बहुत बडी साधना है। हमारे योग साहित्य में दो प्रकार के मौन का उल्लेख किया गया है। प्रथम मौन का सीधा संबंध वाणी से है, जो बहिमौनकहलाता है। अपनी वाणी को वश में करना, न बोलना बहिमौनके अंतर्गत आता है। दूसरा मौन आत्मा से जुडा है, जो अंतमौनकहलाता है। ईष्र्या-द्वेष या अपवित्र विचारों को अपने मन से निकाल कर आत्मोन्मुखीबनना अन्तमौनहै। दूसरों के हित के लिए कहा गया कथन भी मौन के अंतर्गत आता है।
श्रीकृष्ण अर्जुन से कहते हैं कि जिस व्यक्ति ने मौन की महत्ता जान ली है, वह दुख से कभी विचलित नहीं हो सकता। वह न तो सुख में मगन हो सकता है और न ही दुख से दुखी। वह राग, द्वेष, भय, क्रोध आदि विकारों से दूर रहता है। सच्चे अर्थो में ऐसे व्यक्ति ही साधु कहलाते हैं। यदि आप मौन रहते हैं, तो स्पष्ट है कि आप सहनशील हैं। आप यदि अध्यात्म-पथ की ओर उन्मुख होना चाहते हैं, तो मौन आपके लिए सशक्त माध्यम है। मानसिक तनाव, व्याकुलता और अशांति के क्षण में यह क्षण शांतिदायकहोता है। कहा गया है कि मौन व्रत में ही मुनि जनों की प्रतिष्ठा सुरक्षित रहती है। जो कार्य बोलने से नहीं हो पाता है, वह इससे सहज, सरल बन जाता है। यदि आप कलह और निंदा से बचना चाहते हैं, तो उसका एकमात्र उपाय मौन है।

Saturday, April 16, 2011

अप्रैल 2011 पर्व त्यौहार


15 अप्रैल: बंगाली नववर्ष 1418 शुरू, जूडिशीतल (मिथिलांचल), मदन द्वादशी, विष्णु द्वादशी, श्यामबाबा द्वादशी, अनंगत्रयोदशी (प्रदोषकालीन), प्रदोष व्रत, श्रीहरि-दमनकोत्सव, भीमचंडी-दर्शन, रुक्मिणी जयंती
16 अप्रैल: महावीर जयंती (जैन), शिव दमनक चतुर्दशी, मीनाक्षी कल्याणम् (द.भारत), मदनभंजिका चतुर्दशी (मिथिलां.), रत्नत्रय व्रत 3 दिन (दिग.जैन)
17 अप्रैल: पूर्णिमा व्रत, श्रीसत्यनारायण व्रत-कथा, पाक्षिक प्रतिक्रमण (श्वेत.जैन)
18 अप्रैल: स्नान-दान की चैत्री पूर्णिमा, श्रीहनुमान जयंती, छत्रपति शिवाजी की पुण्यतिथि, वैशाख स्नान-नियम प्रारंभ, षोडशकारण व्रत पूर्ण (दि.जै.)
19 अप्रैल: कच्छपावतार जयंती, वैशाख के प्रत्येक मंगलवार को श्रीमंगलनाथ-दर्शन (उज्जयिनी), आशा द्वितीया
20 अप्रैल: सूर्य सायन वृष में दिन 3.49 बजे, सौर ग्रीष्म ऋतु प्रारंभ
21 अप्रैल: संकष्टी श्रीगणेश चतुर्थी व्रत, अनुसूइया जयंती
22 अप्रैल: श्रीपंचमी (जम्मू-कश्मीर)
23 अप्रैल: वेताल षष्ठी (जम्मू-कश्मीर), कोकिला षष्ठी (मिथिलांचल), बाबू कुँवर सिंह जयंती (बिहार, झारखण्ड)
24 अप्रैल:भानु सप्तमी, शर्करा सप्तमी (मिथिलांचल)
25 अप्रैल: शीतलाष्टमी-बसौड़ा, कालाष्टमी व्रत, वैधृति महापात रात्रि 9.44 से देर रात 3.20 तक
26 अप्रैल: चण्डिका नवमी व्रत
28 अप्रैल: वरूथिनी एकादशी व्रत, श्रीवल्लभाचार्य महाप्रभु जयंती, श्रीवल्लभ संवत् 534 प्रारंभ, पंचकोशी-पंचेशानि यात्रा शुरू (उज्जयिनी)
29 अप्रैल: एकादशी व्रत (निम्बार्क वैष्णव), वंजुली महाद्वादशी
30 अप्रैल: शनि-प्रदोष व्रत

Friday, April 15, 2011

यश और धन



हिन्दू धर्म शास्त्रों में बृहस्पति को देवगुरु बताया गया है। ज्योतिष शास्त्रों में भी गुरु को शुभ ग्रह माना गया है। गुरु के शुभ प्रभाव से बुद्धि, ज्ञान के द्वारा मान-सम्मान, धन और सुख-शांति प्राप्ति होती है। धर्म, अध्यात्म में रूचि होने के साथ व्यक्तित्व प्रभावशाली बनता है। वहीं अशुभ प्रभाव मानसिक दोष व तनाव के साथ आर्थिक संकट भी पैदा कर सकता है। यही कारण है कि शास्त्रों में गुरुवार को गुरु की उपासना में इन 3 गुरु मंत्रों के विशेष जप बहुत ही असरदार माने गए हैं। जिनके प्रभाव से बुद्धि, यश, सम्मान मिलने के साथ ही आर्थिक परेशानियों का भी अंत होता है। गुरु दोषों का भी शमन होता है। शास्त्रों के मुताबिक इन गुरु मंत्रो की जप संख्या 19000 होनी चाहिए। किंतु अगर इतना कर पाना संभव न भी हो तो यथाशक्ति इन मंत्रों का जप सुबह और शाम किया जा सकता है। किंतु शाम का वक्त श्रेष्ठ माना गया है। 

बीज मंत्र - ॐ ग्रां ग्रीं ग्रौं स: गुरवे नम:। 

सामान्य मंत्र - ॐ बृं बृहस्पतये नम: 

पौराणिक मंत्र - देवाना च ऋषिणां च गुरुं कांचसंनिभम्। बुद्धिभूतं त्रिलोकेशं तं नमामि बृहस्पतिम्।। 

Thursday, April 14, 2011

सभी काम श्रेष्ठ हैं



स्वामी विवेकानंद ने कर्तव्य और कर्मयोग को सर्वोपरि बताया है। कोई भी काम छोटा-बडा नहीं होता, यह उनके इस व्याख्यान से पता चलता है..
यदि कोई मनुष्य संसार से विरक्त होकर ईश्वरोपासना में लग जाए, तो उसे यह नहीं समझना चाहिए कि जो लोग संसार में रहकर संसार के हित के लिए कार्य करते हैं, वे ईश्वर की उपासना नहीं करते। संसार के हित में काम करना भी एक उपासना ही है। अपने-अपने स्थान पर सभी बडे हैं।
इस संबंध में मुझे एक कहानी का स्मरण आ रहा है। एक राजा था। वह संन्यासियों से सदैव पूछा करता था-संसार का त्याग कर जो संन्यास ग्रहण करता है, वह श्रेष्ठ है, या संसार में रहकर जो गृहस्थ के कर्तव्य निभाता है?
नगर में एक तरुण संन्यासी आए। राजा ने उनसे भी यही प्रश्न किया। संन्यासी ने कहा, हे राजन् अपने-अपने स्थान पर दोनों ही श्रेष्ठ हैं, कोई भी कम नहीं है। राजा ने उसका प्रमाण मांगा। संन्यासी ने उत्तर दिया, हां, मैं इसे सिद्ध कर दूंगा, परंतु आपको कुछ दिन मेरे साथ मेरी तरह जीवन व्यतीत करना होगा। राजा ने संन्यासी की बात मान ली।
वे एक बडे राज्य में आ पहुंचे। राजधानी में उत्सव मनाया जा रहा था। घोषणा करने वाले ने चिल्लाकर कहा, इस देश की राजकुमारी का स्वयंवर होने वाला है। जिस राजकुमारी का स्वयंवर हो रहा था, वह संसार में अद्वितीय सुंदरी थी और उसका भावी पति ही उसके पिता के बाद उसके राज्य का उत्तराधिकारी होने वाला था। इस राजकुमारी का विचार एक अत्यंत सुंदर पुरुष से विवाह करने का था, परंतु उसे योग्य व्यक्ति मिलता ही न था।
राजकुमारी रत्‍‌नजटित सिंहासन पर बैठकर आई। उसके वाहक उसे एक राजकुमार के सामने से दूसरे के सामने ले गए। इतने ही में वहां एक दूसरा तरुण संन्यासी आ पहुंचा। वह इतना सुंदर था कि मानो सूर्यदेव ही आकाश छोडकर उतर आए हों। राजकुमारी का सिंहासन उसके समीप आया और ज्यों ही उसने संन्यासी को देखा, त्यों ही वह रुक गई और उसके गले में वरमालाडाल दी।
तरुण संन्यासी ने एकदम माला को रोक लिया और कहा, मैं संन्यासी हूं मुझे विवाह से क्या प्रयोजन? राजा ने उससे कहा, देखो, मेरी कन्या के साथ तुम्हें मेरा आधा राज्य अभी मिल जाएगा और संपूर्ण राज्य मेरी मृत्यु के बाद। लेकिन संन्यासी वह सभा छोडकर चला गया। राजकुमारी इस युवा पर इतनी मोहित हो गई कि युवा संन्यासी के पीछे-पीछे चल पडी।
दूसरे राज्य के राजा को लेकर आए संन्यासी भी पीछे-पीछे चल दिए। जंगल में जाकर संन्यासी नजरों से ओझल हो गया। हताश होकर राजकुमारी वृक्ष के नीचे बैठ गई। इतने में राजा और संन्यासी उसके पास आ गए। रात हो गई थी। उस पेड की एक डाली पर एक छोटी चिडिया, उसकी स्त्री तथा उसके तीन बच्चे रहते थे। उस चिडिया ने पेड के नीचे इन तीन लोगों को देखा और अपनी स्त्री से कहा, देखो हमारे यहां ये लोग अतिथि हैं, जाडे का मौसम है। आग जलानी चाहिए। वह एक जलती हुई लकडी का टुकडा अपनी चोंच में दबा कर लाया और उसे अतिथियों के सामने गिरा दिया। उन्होंने उसमें लकडी लगा-लगाकर आग तैयार कर ली, परंतु चिडिया को संतोष नहीं हुआ। उसने अपनी स्त्री से फिर कहा, ये लोग भूखे हैं। हमारा धर्म है कि अतिथि को भोजन कराएं। यह कहकर वह आग में कूद पडा और भुन गया। उस चिडिया की स्त्री ने मन में कहा, ये तो तीन लोग हैं, उनके भोजन के लिए केवल एक ही चिडिया पर्याप्त नहीं। पत्‍‌नी के रूप में मेरा कर्तव्य है कि अपने पति के परिश्रमों को मैं व्यर्थ न जाने दूं। वह भी आग में गिर गई और भुन गई। इसके बाद उन तीन छोटे बच्चों ने भी यही किया।
तब संन्यासी ने राजा से कहा, देखो राजन, तुम्हें अब ज्ञात हो गया है कि अपने-अपने स्थान में सब बडे हैं। यदि तुम संसार में रहना चाहते हो, तो इन चिडियों के समान रहो, दूसरों के लिए अपना जीवन दे देने को सदैव तत्पर रहो। और यदि तुम संसार छोडना चाहते हो, तो उस युवा संन्यासी के समान हो, जिसके लिए वह परम सुंदरी स्त्री और एक राज्य भी तृणवत था। अपने-अपने स्थान में सब श्रेष्ठ हैं, परंतु एक का कर्तव्य दूसरे का कर्तव्य नहीं हो सकता।




Wednesday, April 13, 2011

मनोकामना पूरी करे वाली स्तुति



भगवान राम का नाम लेने मात्र से ही जन्म-जन्मांतर के पाप धुल जाते हैं। भगवान राम को प्रसन्न करने के लिए कई स्तुतियां, मंत्र, आरती आदि की रचना की गई है। इनके माध्यम से श्रीराम को आसानी से प्रसन्न किया जा सकता है। ऐसी ही एक स्तुति का वर्णन रामचरितमानस के अरण्यकाण्ड में आया है। भगवान राम की यह स्तुति मुनि अत्रि द्वारा की गई है। इस स्तुति का पाठ करने से भगवान राम भक्त पर प्रसन्न होते हैं तथा उसकी हर मनोकामना पूरी करते हैं। यह राम स्तुति इस प्रकार है-

नमामि भक्त वत्सलं । कृपालु शील कोमलं ॥ भजामि ते पदांबुजं । अकामिनां स्वधामदं ॥

निकाम श्याम सुंदरं । भवाम्बुनाथ मंदरं ॥ प्रफुल्ल कंज लोचनं । मदादि दोष मोचनं ॥

प्रलंब बाहु विक्रमं । प्रभोऽप्रमेय वैभवं ॥ निषंग चाप सायकं । धरं त्रिलोक नायकं ॥

दिनेश वंश मंडनं । महेश चाप खंडनं ॥ मुनींद्र संत रंजनं । सुरारि वृंद भंजनं ॥

मनोज वैरि वंदितं । अजादि देव सेवितं ॥ विशुद्ध बोध विग्रहं । समस्त दूषणापहं ॥

नमामि इंदिरा पतिं । सुखाकरं सतां गतिं ॥ भजे सशक्ति सानुजं । शची पतिं प्रियानुजं ॥

त्वदंघ्रि मूल ये नरा: । भजंति हीन मत्सरा ॥ पतंति नो भवार्णवे । वितर्क वीचि संकुले ॥

विविक्त वासिन: सदा । भजंति मुक्तये मुदा ॥ निरस्य इंद्रियादिकं । प्रयांति ते गतिं स्वकं ॥

तमेकमभ्दुतं प्रभुं । निरीहमीश्वरं विभुं ॥ जगद्गुरुं च शाश्वतं । तुरीयमेव केवलं ॥

भजामि भाव वल्लभं । कुयोगिनां सुदुर्लभं ॥ स्वभक्त कल्प पादपं । समं सुसेव्यमन्वहं ॥

अनूप रूप भूपतिं । नतोऽहमुर्विजा पतिं ॥ प्रसीद मे नमामि ते । पदाब्ज भक्ति देहि मे ॥

पठंति ये स्तवं इदं । नरादरेण ते पदं ॥ व्रजंति नात्र संशयं । त्वदीय भक्ति संयुता ॥

Tuesday, April 12, 2011

पांच पूजनीय देवता

देवताओं में दिव्य गुण होते हैं। जो अपने गुणों से दूसरों को लाभ पहुंचाते हैं उनका उपकार करते हैं वही देवता हैं। देवता दो प्रकार के होते हैं- जड देवता और चेतन देवता। जड देवताओं में अग्नि, जल, वायु, पृथ्वी, सूर्य, चंद्र, नक्षत्र, प्राण, विद्युत, यज्ञ आदि प्रमुख हैं। चेतन देवताओं में जीवात्मा और परमात्मा की गणना होती है। परमात्मा तो सभी देवों के देव महादेव हैं, क्योंकि सभी जड-चेतन देव परमात्मा में ही स्थित है। वही सब जगत के कर्ता, धर्ता और संहर्ता, अधिष्ठाता हैं।
अपने देश में पंचदेव पूजा की परंपरा बहुत प्राचीन है। पूजा का अर्थ है सत्कार और सत्कार यानी यथोचित व्यवहार। अब जिन पांच चेतन देवताओं की पूजा करना सबके लिए उपयोगी और हितकारी है उनकी चर्चा करते हुए महर्षि दयानंद सरस्वती अपने बहुचर्चित ग्रंथ सत्यार्थप्रकाश में लिखते हैं कि

  •  प्रथम माता मूर्तिमतीपूजनीय देवता अर्थात् संतानों द्वारा तन, मन, धन से सेवा करके माता को प्रसन्न रखना, हिंसा कभी न करना।
  • दूसरा पिता सत्कर्तव्यदेव, उसकी भी माता के समान सेवा करना। 
  • तीसरा आचार्य जो विद्या का देने वाला है, उसकी तन, मन, धन से सेवा करना। 
  • चौथा अतिथि जो विद्वान, धार्मिक, निष्कपटीहो, उसकी सेवा करें।
  •  पांचवां स्त्री के लिए पति और पुरुष के लिए स्वपत्नी पूजनीय है। 


ये पांच मूर्तिमान देव जिनके संग से मनुष्य देह की उत्पत्ति, पालन, सत्य शिक्षा, विद्या और सत्योपदेशकी प्राप्ति होती है। ये ही परमेश्वर की प्राप्ति की सीढियां हैं। इन पांचों चेतन देवताओं को ढूंढनेके लिए कहीं दूर जाने की आवश्यकता नहीं है। ये सभी हमारे बहुत निकट हैं।
स्वर्ग और नरक हमारे घर में ही हैं। पति परमेश्वर की बात तो प्राय: कही जाती है, परंतु पत्नी को पति के लिए पूजनीय देव बताकर दयानंद ने नारी के सम्मान को जिस ऊंचाई पर पहुंचा दिया है वह अकल्पनीय है। यदि इस पंचदेव पूजा को गृहस्थ जीवन का फिर से अंग बनाने का प्रयास किया जाए तो निश्चय ही हमारा जीवन श्रेष्ठ, आदर्शमयऔर सुख-शांति से परिपूर्ण हो जाएंगे।

Monday, April 11, 2011

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यदि मन भटकता है तो, सोमवार को अपनाएं ये टिप्स

 ज्योतिष शास्त्र के अनुसार एक मात्र चंद्र ऐसा ग्रह है तो बहुत तेज गति से चलता है। चंद्र मात्र ढाई दिन ही एक राशि में रुकता है। इसके चंचल स्वभाव के कारण इसे मन का देवता भी कहा जाता है। चंद्र हमारे मन को पूरी तरह प्रभावित करता है। यदि चंद्र नीच का या अशुभ फल देने वाला हो तो व्यक्ति पागल भी हो सकता है। चंद्र विपक्ष में होने पर व्यक्ति कोई भी निर्णय ठीक से नहीं कर पाता। मन भटकता रहता है। किसी भी कार्य को लगन से नहीं कर पाता। यदि आपको भी निर्णय लेने में काफी समय लगता है या सही निर्णय नहीं ले पाते है तो आपको यह उपाय करने चाहिए:
  1. - प्रति सोमवार भगवान शिव की विशेष पूजा करें
  2. - प्रतिदिन शिव पर जल चढ़ाएं।
  3. - प्रति सोमवार छोटी कन्याओं को दूध का सेवन कराएं।
  4. - प्रति सोमवार बबूल के पेड़ की जड़ों में दूध चढ़ाएं।
  5. - पीपल को रोज जल चढ़ाएं।
  6. - सोमवार को सफेद गाय का दान करें।
  7. - सोमवार को सफेद गाय को गुड़, चावल आदि खिलाएं।
  8. - सोमवार नदी में चांदी का सिक्का प्रवाहित करें।
  9. - अपने साथ हमेशा एक चांदी का सिक्का रखें।
  10. - चंद्र से संबंधित दान स्वीकार न करें।
  11. - गरीबों को दूध दान में दें।
  12. - आपकी कुंडली किसी ज्योतिषी को दिखाकर परामर्श लें।


Sunday, April 10, 2011

राम सिर्फ नाम नहीं



भगवान राम को मर्यादा पुरुषोत्तम कहा गया है। हमारे धर्म शास्त्रों के अनुसार राम सिर्फ एक नाम नहीं अपितु एक मंत्र  है, जिसका नित्य स्मरण करने से सभी दु:खों से मुक्ति मिल जाती है। राम शब्द का अर्थ है- मनोहर, विलक्षण, चमत्कारी, पापियों का नाश करने वाला व भवसागर से मुक्त करने वाला। रामचरित मानस के बालकांड में एक प्रसंग में लिखा है-
नहिं कलि करम न भगति बिबेकू। राम नाम अवलंबन एकू।।

अर्थात कलयुग में न तो कर्म का भरोसा है, न भक्ति का और न ज्ञान का। सिर्फ राम नाम ही एकमात्र सहारा हैं।

स्कंदपुराण में भी राम नाम की महिमा का गुणगान किया गया है-

रामेति द्वयक्षरजप: सर्वपापापनोदक:। गच्छन्तिष्ठन् शयनो वा मनुजो रामकीर्तनात्।। 

इड निर्वर्तितो याति चान्ते हरिगणो भवेत्।

अर्थात यह दो अक्षरों का मंत्र(राम) जपे जाने पर समस्त पापों का नाश हो जाता है। चलते, बैठते, सोते या किसी भी अवस्था में जो मनुष्य राम नाम का कीर्तन करता है, वह यहां कृतकार्य होकर जाता है और अंत में भगवान विष्णु का पार्षद बनता है। इसमें कोई संदेह नहीं है कि जो शक्ति भगवान की है उसमें भी अधिक शक्ति भगवान के नाम की है। नाम जप की तरंगें हमारे अंतर्मन में गहराई तक उतरती है। इससे मन और प्राण पवित्र हो जाते हैं, बुद्धि का विकास होने लगता है, सारे पाप नष्ट हो जाते हैं, मनोवांछित फल मिलता है, सारे कष्ट दूर हो जाते हैं, मुक्ति मिलती है तथा समस्त प्रकार के भय दूर हो जाते हैं।

Saturday, April 9, 2011

आरती क्यों और कैसे?



पूजा के अंत में हम सभी भगवान की आरती करते हैं। आरती के दौरान कई सामग्रियों का प्रयोग किया जाता है। इन सबका विशेष अर्थ होता है। ऐसी मान्यता है कि न केवल आरती करने, बल्कि इसमें शामिल होने पर भी बहुत पुण्य मिलता है। किसी भी देवता की आरती करते समय उन्हें 3बार पुष्प अर्पित करें। इस दरम्यान ढोल, नगाडे, घडियाल आदि भी बजाना चाहिए।
एक शुभ पात्र में शुद्ध घी लें और उसमें विषम संख्या [जैसे 3,5या 7]में बत्तियां जलाकर आरती करें। आप चाहें, तो कपूर से भी आरती कर सकते हैं। सामान्य तौर पर पांच बत्तियों से आरती की जाती है, जिसे पंच प्रदीप भी कहते हैं। आरती पांच प्रकार से की जाती है। पहली दीपमाला से, दूसरी जल से भरे शंख से, तीसरा धुले हुए वस्त्र से, चौथी आम और पीपल आदि के पत्तों से और पांचवीं साष्टांग अर्थात शरीर के पांचों भाग [मस्तिष्क, दोनों हाथ-पांव] से। पंच-प्राणों की प्रतीक आरती हमारे शरीर के पंच-प्राणों की प्रतीक है। आरती करते हुए भक्त का भाव ऐसा होना चाहिए, मानो वह पंच-प्राणों की सहायता से ईश्वर की आरती उतार रहा हो। घी की ज्योति जीव के आत्मा की ज्योति का प्रतीक मानी जाती है। यदि हम अंतर्मन से ईश्वर को पुकारते हैं, तो यह पंचारती कहलाती है। सामग्री का महत्व आरती के दौरान हम न केवल कलश का प्रयोग करते हैं, बल्कि उसमें कई प्रकार की सामग्रियां भी डालते जाते हैं। इन सभी के पीछे न केवल धार्मिक, बल्कि वैज्ञानिक आधार भी हैं।
कलश- कलश एक खास आकार का बना होता है। इसके अंदर का स्थान बिल्कुल खाली होता है। कहते हैं कि इस खाली स्थान में शिव बसते हैं। यदि आप आरती के समय कलश का प्रयोग करते हैं, तो इसका अर्थ है कि आप शिव से एकाकार हो रहे हैं। किंवदंतिहै कि समुद्र मंथन के समय विष्णु भगवान ने अमृत कलश धारण किया था। इसलिए कलश में सभी देवताओं का वास माना जाता है।
जल- जल से भरा कलश देवताओं का आसन माना जाता है। दरअसल, हम जल को शुद्ध तत्व मानते हैं, जिससे ईश्वर आकृष्ट होते हैं।
नारियल- आरती के समय हम कलश पर नारियल रखते हैं। नारियल की शिखाओं में सकारात्मक ऊर्जा का भंडार पाया जाता है। हम जब आरती गाते हैं, तो नारियल की शिखाओं में मौजूद ऊर्जा तरंगों के माध्यम से कलश के जल में पहुंचती है। यह तरंगें काफी सूक्ष्म होती हैं।
सोना- ऐसी मान्यता है कि सोना अपने आस-पास के वातावरण में सकारात्मक ऊर्जा फैलाता है। सोने को शुद्ध कहा जाता है। यही वजह है कि इसे भक्तों को भगवान से जोडने का माध्यम भी माना जाता है।
तांबे का पैसा- तांबे में सात्विक लहरें उत्पन्न करने की क्षमता अधिक होती है। कलश में उठती हुई लहरें वातावरण में प्रवेश कर जाती हैं। कलश में पैसा डालना त्याग का प्रतीक भी माना जाता है। यदि आप कलश में तांबे के पैसे डालते हैं, तो इसका मतलब है कि आपमें सात्विक गुणों का समावेश हो रहा है।
सप्तनदियोंका जल-गंगा, गोदावरी,यमुना, सिंधु, सरस्वती, कावेरीऔर नर्मदा नदी का जल पूजा के कलश में डाला जाता है। सप्त नदियों के जल में सकारात्मक ऊर्जा को आकृष्ट करने और उसे वातावरण में प्रवाहित करने की क्षमता होती है। क्योंकि ज्यादातर योगी-मुनि ने ईश्वर से एकाकार करने के लिए इन्हीं नदियों के किनारे तपस्या की थी। 
सुपारी और पान- यदि हम जल में सुपारी डालते हैं, तो इससे उत्पन्न तरंगें हमारे रजोगुण को समाप्त कर देते हैं और हमारे भीतर देवता के अच्छे गुणों को ग्रहण करने की क्षमता बढ जाती है। पान की बेल को नागबेलभी कहते हैं। नागबेलको भूलोक और ब्रह्मलोक को जोडने वाली कडी माना जाता है। इसमें भूमि तरंगों को आकृष्ट करने की क्षमता होती है। साथ ही, इसे सात्विक भी कहा गया है। देवता की मूर्ति से उत्पन्न सकारात्मक ऊर्जा पान के डंठल द्वारा ग्रहण की जाती है।
तुलसी- आयुर्र्वेद में तुलसी का प्रयोग सदियों से होता आ रहा है। अन्य वनस्पतियों की तुलना में तुलसी में वातावरण को शुद्ध करने की क्षमता अधिक होती है।

Thursday, April 7, 2011

पर्व त्यौहार

8 अप्रैल :श्रीपंचमी, श्रीरामराज्याभिषेकदिवस,  हयव्रत,अनंतनाग पंचमी [जम्मू-कश्मीर], रोहिणी व्रत [जैन], पशुपतीश्वर-दर्शन[काशी], चैती छठ का खरना, दशलक्षणव्रत 10दिन एवं पुष्पांजलि व्रत 5दिन [दिग.जैन]
9 अप्रैल :स्कन्द [कुमार] षष्ठी व्रत, सूर्यषष्ठीव्रत [चैती छठ], यमुना जयंती महोत्सव, वासंतीदुर्गापूजा-   बिल्वाभिमंत्रण षष्ठी [मिथिलांचल], अशोकाषष्ठी
10 अप्रैल :वासंतीदुर्गा-पूजा प्रारंभ, पत्रिका प्रवेश [मिथिलांचल], महासप्तमीव्रत, कालरात्रि सप्तमी, कमला सप्तमी, नवपदओली शुरू [श्वेत.जैन]
11 अप्रैल :श्रीदुर्गा-महाष्टमीव्रत, अशोकाष्टमी[बंगाल], श्रीअन्नपूर्णाष्टमीव्रत एवं परिक्त्रमा [काशी],        महानिशापूजा, सांईबाबाउत्सव 3दिन [शिरडी]
12 अप्रैल :श्रीरामनवमीव्रत, श्रीरामजन्मभूमि- दर्शन [अयोध्या], तारा महाविद्याजयंती, श्रीदुर्गा-महानवमी,स्वामी नारायण जयंती [अक्षरधाम], जवारे विसर्जन
13 अप्रैल :चैत्रीविजयादशमी [मिथिलांचल], दशहरा [मालवा], धर्मराज दशमी, व्यतिपातमहापात देर रात 1.09से प्रात:5.36 तक
14 अप्रैल: कामदाएकादशी व्रत, श्रीलक्ष्मीनारायणदोलोत्सव, फूलडोलग्यारस,श्रीबांकेबिहारीजी महाराज का फूलबंगलाबनना शुरू [वृंदावन], चडकपूजा [बंगाल], डा. अम्बेडकर जयंती, वैशाखी

दस साल बाद कल बनेगा दुर्लभ लक्ष्मी योग

इस नवरात्रि में कल शुक्रवार 8 अप्रैल को पंचमी तिथि और रोहिणी नक्षत्र के साथ रत्नांकुर नाम का शुभ लक्ष्मी योग बन रहा है। ये योग आज से 10 दस साल पहले 2001 में बना था। कुछ विद्वानों के अनुसार शुक्र और चंद्र मिलकर लक्ष्मी योग बनाते हैं। कल शुक्रवार को रोहिणी नक्षत्र है जो कि चंद्रमा का नक्षत्र है। इसलिए शुभ लक्ष्मी योग बन रहा है।इस लक्ष्मी योग में अगर आप लक्ष्मी प्राप्ति के लिए कुछ छोटे छोटे उपाय करें तो आपके घर में बरकत बनी रहेगी साथ ही हमेशा के लिए आपके घर में लक्ष्मी का निवास रहेगा।नवरात्रि में पंचमी को लक्ष्मी जी की तिथि माना हैं इस दिन लक्ष्मी के उपाय करने से लक्ष्मी जी की विशेष कृपा होती है। नवरात्री में पंचमी पर लक्ष्मी के साथ धन एवं ऐश्वर्य के अधिपति देवता शुक्र का भी दिन है इसलिए इस दिन अगर धन प्राप्ति के कोई उपाय करें तो निश्चित ही लाभ मिलेगा।इसलिए शुक्रवार और पंचमी का दिन धन संबंधित प्रयोग के लिए सर्वश्रेष्ठ माना गया है।
1. लक्ष्मी जी को कमल पुष्प और कमल गट्टे अर्पित करें।
2. सोने या चांदी की लक्ष्मी प्रतिमा का पूजन कर के धन स्थान पर रखें।
3. सात शुक्रवार तक 10 वर्ष से कम उम्र की कन्याओं को गाय के दूध की खीर खीलाएं तो आपको जल्दी ही  इसके शुभ परिणाम मिलेंगे।
4. धन प्राप्ति के लिए आप अपने पास चांदी का शुक्र यंत्र रखें।
5. भोजपत्र पर लाल चंदन से श्रीं: लिख कर उसकी पूजा करें।
6. स्फटिक श्री यंत्र की स्थापना करें तो आपके घर में दो तरफ से लक्ष्मी आएगी।
7. मां लक्ष्मी को शुद्ध गाय के घी का दीपक लगाएं।
8. सुगंधित सफेद फूल महालक्ष्मी जी को चढ़ाएं।
9. पिता से सोना लेकर धारण करें या धन स्थान पर रख कर पूजा करें तो जल्दी ही कमाई का अन्य साधन मिल जाएगा।
10. भाई या बहन को शुक्र देव के लिए सफेद वस्त्र के साथ चांदी का सिक्का दें।
11. माता से सफेद कपड़े में चावल और चांदी का सिक्का लेकर धन स्थान पर रखने से मां लक्ष्मी प्रस्रन्न होगी।

Wednesday, April 6, 2011

समय की कमी हो तो देव पूजा के लिए यह उपाय अपनाएं



आज के भागदौड़ भरें जीवन में धार्मिक आस्था रखने वाले अनेक लोग चाहकर भी जब देव उपासना से वंचित रहते हैं तो कहीं न कहीं उनका मन बेचैन रहता है। वहीं कुछ लोग अति महत्वाकांक्षाओं के चलते देव स्मरण से दूर हो जाते हैं। इसलिए यहां बताया जा रहा है ऐसे ही लोगों के लिए ऐसे देवता के स्मरण का छोटा-सा उपाय जो समय की कमी होने पर भी अपनाया जा सकता है और जीवन में आने वाली अनचाही परेशानियों से बचा जा सकता है। जीवन से जुड़ा कोई भी कार्य हो शुभ और अच्छी शुरूआत बेहतर नतीजों को नियत कर देती है। जब काम को शुरू और बिना विघ्रों के सफलता पाने की बात होती है तो हिन्दू धर्म में भगवान श्री गणेश का ही स्मरण किया जाता है। भगवान श्री गणेश की उपासना के लिए चतुर्थी, बुधवार का बहुत महत्व है। अगर आप दिन और काम की अच्छी शुरूआत चाहते हैं तो भगवान श्री गणेश के स्मरण का यह छोटा-सा तरीका अपनाए- सुबह स्नान के बाद देवालय या भगवान श्री गणेश की प्रतिमा या तस्वीर के सामने यह मंत्र बोल कर धूप या अगरबत्ती लगाएं - 

वनस्पतिरसोद्भूतों गन्धाढ्यो गन्ध उत्तम:। आघ्रेय सर्वदेवानां धूपो यं प्रतिगृह्यताम।।
 

श्री गणेश को धूप या अगरबत्ती दिखाकर इस मंत्र से श्री गणेश का ध्यान कर लें-

अभीप्सितार्थसिद्धयर्थं पूजितो य: सुरासुरै:। सर्वविघ्रहरस्तस्मै गणाधिपतये नमो नम:।।

इसके बाद भगवान श्री गणेश को प्रणाम कर दिन और काम बिन बाधा पूरा होने की कामना कर कार्य के लिए निकलें। यह उपाय आप कार्यस्थल पर पवित्रता का ध्यान रखते हुए अपना सकते हैं।