Tuesday, April 19, 2011

ॐ से मिलता है आत्मबल


टाइम मैगजीन में एक रिपोर्ट के अनुसार, मेडिकल सेंटर में हृदय रोगियों को ऑपरेशन से पहले एक मनोवैज्ञानिक प्रोग्राम से अवगत कराया जाता है, जिसमें अंगमर्दन,योग व ध्यान करने को कहा जाता है। अधिकतर रोगियों को सर्जरी से पहले ॐ का उच्चारण करने के लिए कहा जाता है। उनका तर्क था कि इससे वे तनावमुक्त हो जाते हैं और उनका मन शांत हो जाता है।
एक सर्जन के अनुसार, ॐ या गायत्री मंत्र के जाप के पीछे कोई धार्मिक मंशा नहीं है। दरअसल, रोगी एनेस्थीसिया से पहले घबरा जाते हैं। इसलिए उन्हें हेडफोनकी सहायता से या तो ॐ सुनाया जाता है या फिर उच्च्चारित करने को कहा जाता है। ऐसा करने से देखा गया है कि रोगियों को आत्मबल मिलता है और उनकी बुद्धि एकाग्र होती है।

पुराणों और उपनिषदों में भी ॐ की महत्ता वर्णित है। कठोपनिषद्में महर्षि यम नचिकेता को बताते हैं कि ईश्वर को कई नामों में से ॐ या ओंकार ही सर्वोच्च और प्रतिष्ठित नाम है। उपनिषदों में ब्रह्मा कहते हैं कि ॐ के तीन अक्षर अ,ऊ और मऋग्वेद, यजुर्वेद और सामवेद की ओर इंगित करते हैं। अर्थात यह बीजाक्षर तीनों वेदों का सार है। प्रश्नोपनिषदमें महर्षि पिप्लादने कहा था, ॐक्लेशों की औषधि है। ॐका अर्थ अनन्त, नि:सीम और श्रेष्ठ भी होता है। ईसाइयोंकी पवित्र पुस्तक बाइबल में यह स्पष्ट कहा गया है कि शुरू में सिर्फ शब्द अस्तित्व में था, जो ईश्वर के पास था। कहीं यह शब्द ॐही तो नहीं..? छांदोग्यउपनिषद के प्रथम खंड में बताया गया है कि ॐका उच्चारण करने वाला समृद्धिशाली बनता है। जो ॐका ध्यान या उच्चारण करते हैं, वे जीवन में सफलता प्राप्त करते हैं। छांदोग्यउपनिषद में स्पष्ट किया गया है कि किस प्रकार ॐ का ध्यान करने से शक्ति का विस्तार होता है। महर्षि याज्ञवल्क्यने भी कहा है कि ॐ के ध्यान से कुवृत्तियां समाप्त हो जाती हैं। स्वार्थ व घमंड इस प्रकार नष्ट हो जाते हैं, जैसे सूर्य उदय होने पर अंधकार समाप्त हो जाता है। ॐ का जाप किसी भी शारीरिक पीडा या संताप की चिकित्सा नहीं है, बल्कि हमारी बुद्धि व मन को व्यवस्थित रखने में उपयोगी होता है। वेद और उपनिषदों की मानें, तो यह हमारे मन को शांत करता है और हमें सन्मार्ग की ओर ले जाता है।

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