Tuesday, April 12, 2011

पांच पूजनीय देवता

देवताओं में दिव्य गुण होते हैं। जो अपने गुणों से दूसरों को लाभ पहुंचाते हैं उनका उपकार करते हैं वही देवता हैं। देवता दो प्रकार के होते हैं- जड देवता और चेतन देवता। जड देवताओं में अग्नि, जल, वायु, पृथ्वी, सूर्य, चंद्र, नक्षत्र, प्राण, विद्युत, यज्ञ आदि प्रमुख हैं। चेतन देवताओं में जीवात्मा और परमात्मा की गणना होती है। परमात्मा तो सभी देवों के देव महादेव हैं, क्योंकि सभी जड-चेतन देव परमात्मा में ही स्थित है। वही सब जगत के कर्ता, धर्ता और संहर्ता, अधिष्ठाता हैं।
अपने देश में पंचदेव पूजा की परंपरा बहुत प्राचीन है। पूजा का अर्थ है सत्कार और सत्कार यानी यथोचित व्यवहार। अब जिन पांच चेतन देवताओं की पूजा करना सबके लिए उपयोगी और हितकारी है उनकी चर्चा करते हुए महर्षि दयानंद सरस्वती अपने बहुचर्चित ग्रंथ सत्यार्थप्रकाश में लिखते हैं कि

  •  प्रथम माता मूर्तिमतीपूजनीय देवता अर्थात् संतानों द्वारा तन, मन, धन से सेवा करके माता को प्रसन्न रखना, हिंसा कभी न करना।
  • दूसरा पिता सत्कर्तव्यदेव, उसकी भी माता के समान सेवा करना। 
  • तीसरा आचार्य जो विद्या का देने वाला है, उसकी तन, मन, धन से सेवा करना। 
  • चौथा अतिथि जो विद्वान, धार्मिक, निष्कपटीहो, उसकी सेवा करें।
  •  पांचवां स्त्री के लिए पति और पुरुष के लिए स्वपत्नी पूजनीय है। 


ये पांच मूर्तिमान देव जिनके संग से मनुष्य देह की उत्पत्ति, पालन, सत्य शिक्षा, विद्या और सत्योपदेशकी प्राप्ति होती है। ये ही परमेश्वर की प्राप्ति की सीढियां हैं। इन पांचों चेतन देवताओं को ढूंढनेके लिए कहीं दूर जाने की आवश्यकता नहीं है। ये सभी हमारे बहुत निकट हैं।
स्वर्ग और नरक हमारे घर में ही हैं। पति परमेश्वर की बात तो प्राय: कही जाती है, परंतु पत्नी को पति के लिए पूजनीय देव बताकर दयानंद ने नारी के सम्मान को जिस ऊंचाई पर पहुंचा दिया है वह अकल्पनीय है। यदि इस पंचदेव पूजा को गृहस्थ जीवन का फिर से अंग बनाने का प्रयास किया जाए तो निश्चय ही हमारा जीवन श्रेष्ठ, आदर्शमयऔर सुख-शांति से परिपूर्ण हो जाएंगे।

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