हिंदू शास्त्रों के अनुसार वर्षभर में कई विशेष योग बनते हैं लेकिन 6 मई को एक महायोग बन रहा है। इस महायोग का नाम है अक्षय तृतीया। यह वर्ष में सिर्फ एक बार ही आता है। ज्योतिष के अनुसार इस दिन किए गए पुण्य कर्मों का अक्षय पुण्य प्राप्त होता है।
भारतीय कालगणना के अनुसार अबूज़ मुहूर्त है-
१. रामनवमी
२. आखातीज
३. देव उठनी एकादशी
४. फुलेरा दूज
५. बसंत पंचमी
उनमें से एक आखातीज या अक्षय तृतीया। वैशाख मास की शुक्ल पक्ष की तृतीया ही आखातीज या अक्षय तृतीया कहलाती है। अक्षय का अर्थ जिसका कभी क्षय ना हो जो स्थाई रहे। इसी दिन परशुरामजी का जन्म भी हुआ था। परशुरामजी चिरंजिवी है। उनकी आयु का क्षय नहीं हुआ इसलिए इस तिथि को चिरंजीवी तिथि भी कहा जाता है। चारों युगों में त्रेतायुग का आरंभ इस तिथि से हुआ। इस वजह से इसे युगादितिथि भी कहते हैं। चारों धामों में से एक बद्रीनाथधाम के पट इसी दिन से खुलते है। माना जाता है कि इस दिन किया गया दान, पूजन, हवन, दक्षिणा या कोई भी पुण्य कार्य अक्षय फल प्रदान करने वाला होता है।
यह एक स्वर्य सिद्ध मुहूर्त है इस कोई भी शुभ कार्य करने के लिए सबसे अच्छा होता है। कोई भी मांगलिक कार्य इस दिन संपन्न किया जा सकता है। भगवान नर-नारायण, हयग्रीव एवं परशुराम का जन्म इसी तिथि को हुआ था। लोकमान्यता है कि अक्षय तृतिया को यदि रोहिणी नक्षत्र ना हो तो दुष्टों का बल बढ़ता है। हमारे सौभाग्य से इस बार रोहिणी से युक्त अक्षय तृतिया है जो दुष्टों के लिए हानिकर होगी। इस दिन जल से भरे कलश, जूता, छाता, गौ, भूमी, स्वर्णपात्र का दान करना चाहिए। मृत पितरों का तर्पण यह मानकर किया जाता है कि इसका उनको अक्षय फल प्राप्त होगा।
यह एक स्वर्य सिद्ध मुहूर्त है इस कोई भी शुभ कार्य करने के लिए सबसे अच्छा होता है। कोई भी मांगलिक कार्य इस दिन संपन्न किया जा सकता है। भगवान नर-नारायण, हयग्रीव एवं परशुराम का जन्म इसी तिथि को हुआ था। लोकमान्यता है कि अक्षय तृतिया को यदि रोहिणी नक्षत्र ना हो तो दुष्टों का बल बढ़ता है। हमारे सौभाग्य से इस बार रोहिणी से युक्त अक्षय तृतिया है जो दुष्टों के लिए हानिकर होगी। इस दिन जल से भरे कलश, जूता, छाता, गौ, भूमी, स्वर्णपात्र का दान करना चाहिए। मृत पितरों का तर्पण यह मानकर किया जाता है कि इसका उनको अक्षय फल प्राप्त होगा।
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