Thursday, April 28, 2011

शिव प्रिय रुद्राक्ष

रुद्राक्ष भगवान शंकर का प्रिय आभूषण है। दीर्घायु प्रदान करने वाला तथा अकाल मृत्यु को समाप्त करने वाला है। यह जहाँ गृहस्थ व्यक्तियों के लिए अर्थ और काम को प्रदान करता है वहीं संन्यासियों के लिए धर्म और मोक्ष को देने वाला है। मनुष्य की अनेक शारीरिक और मानसिक व्याधियों को दूर करने वाला, मन को शांति प्रदान करने वाला तथा योगियों की कुंडलिनी जागृत करने में सहायक होता है।
रुद्राक्ष के धारक को भूत-प्रेत बाधा तथा किए-कराए का असर नहीं होता है। जो व्यक्ति रुद्राक्ष को धारण करता है वह स्वयं रुद्र के तुल्य हो जाता है। इसके दर्शन मात्र से ही पापों का क्षय हो जाता है। जो मनुष्य भक्ति, मुक्ति, मोक्ष और भोग समान रूप से चाहता है उसके लिए रुद्राक्ष अत्यंत अनुकूल कहा गया है। जिस घर में रुद्राक्ष की पूजा की जाती है वहाँ सदा लक्ष्मीजी का वास रहता है। रुद्राक्ष का कार्यसिद्धी में चालीस दिन में प्रभाव दिखता है। वैसे तो 24 से 48 घंटे में ही इसका प्रभाव दिखने लगता है।

रुद्राक्ष के मुखों के अनुसार ही पुराणों में इनके महत्व और उपयोगिता का उल्लेख मिलता है। एक से चौदह मुखी तक प्रत्येक रुद्राक्ष का अपना अलग-अलग महत्व और उप‍योगिता होती है।

एकमुखी रुद्राक्ष : साक्षात रुद्र स्वरूप है। इसे परब्रह्म माना जाता है। सत्य, चैतन्यस्वरूप परब्रह्म का प्रतीक है। साक्षात शिव स्वरूप ही है। इसे धारण करने से जीवन में किसी भी वस्तु का अभाव नहीं रहता। लक्ष्मी उसके घर में चिरस्थायी बनी रहती है। चित्त में प्रसन्नता, अनायास धनप्राप्ति, रोगमुक्ति तथा व्यक्तित्व में निखार और शत्रुओं पर विजय प्राप्त होती है। ऐसा व्यक्ति जीवन में मनोवांछित इच्छाएँ पूर्ण करने में सफल होता है। यह तीन प्रकार का होता है- गोल, यह अत्यंत दुर्लभ रुद्राक्ष है। आँवल, यह ब‍ड़ी कठिनाई से प्राप्त होता है। काजूदान अर्द्धचंद्राकार, यह सरलता से प्राप्त होता है।

द्विमुखी रुद्राक्ष : शास्त्रों में दोमुखी रुद्राक्ष को अर्द्धनारीश्वर का प्रतीक माना जाता है। शिवभक्तों को यह रुद्राक्ष धारण करना अनुकूल है। यह तामसी वृत्तियों के परिहार के लिए सर्वाधिक उपयुक्त है। इसे धारण करने से मानसिक शांति प्राप्त होती है। चित्त में एकाग्रता तथा जीवन में आध्यात्मिक उन्नति और पारिवारिक सौहार्द में वृद्धि होती है। व्यापार में सफलता प्राप्त होती है। स्त्रियों के लिए भी इसे सर्वाधिक उपयुक्त कहा गया है।

त्रिमुखी रुद्राक्ष : यह रुद्राक्ष ‍अग्निस्वरूप माना गया है। सत्व, रज और तम- इन तीनों यानी त्रिगुणात्मक शक्तियों का स्वरूप यह भूत, भविष्य और वर्तमान का ज्ञान देने वाला है। इसे धारण करने वाले मनुष्य की विध्वंसात्मक प्रवृत्तियों का दमन होता है और रचनात्मक प्रवृत्तियों का उदय होता है। किसी भी प्रकार की बीमारी, कमजोरी नहीं रहती। व्यक्ति क्रियाशील रहता है। यदि किसी की नौकरी नहीं लग रही हो, बेकार हो तो इसके धारण करने से निश्चय ही कार्यसिद्धी होती है। धारक अग्नि के समान तेजस्वी हो जाता है। घर में धन-धान्य की वृद्धि होती है।

चतुर्मुखी रुद्राक्ष : यह ब्रह्म का प्रतिनिधि है। यह शिक्षा में सफलता देता है। जिसकी बुद्धि मंद हो, वाक् शक्ति कमजोर हो तथा स्मरण शक्ति मंद हो उसके लिए यह रुद्राक्ष कल्पतरु के समान है। इसके धारण करने से शिक्षा आदि में असाधारण सफलता मिलती है। बुद्धि और ज्ञान की प्राप्ति तथा सभी प्रकार के मानसिक रोग दूर होते हैं। शारीरिक स्वास्थ्य उत्तम रहता है।

पंचमुखी रुद्राक्ष : यह भगवान शंकर का प्रतिनिधि है। यह कालाग्नि के नाम से जाना जाता है। शत्रुनाश के लिए पूर्णतया फलदायी है। इसके धारण करने पर साँप-बिच्छू आदि जहरीले जानवरों का डर नहीं रहता। मानसिक शांति और प्रफुल्लता के लिए भी इसका उपयोग किया होता है। यह उन्नतिदायक माना गया है। सब पापों को नष्ट करने वाला तथा उत्तरोत्तर प्रगति करने में सहायक है।

षष्ठमुखी रुदाक्ष : यह षडानन कार्तिकेय का स्वरूप है। इसे धारण करने से खोई हुई शक्तियाँ जागृत होती हैं। स्मरण शक्ति प्रबल तथा बुद्धि तीव्र होती है। कार्यों में पूर्ण तथा व्यापार में आश्चर्यजनक सफलता प्राप्त होती है। इसे धारण करने से चर्मरोग, हृदय की दुर्बलता तथा नेत्ररोग दूर होते हैं। जीवन में किसी प्रकार का अभाव नहीं रहता। हिस्टीरिया, प्रदर स्त्रियों से संबंधित रोग दूर करने में उत्तम होता है।

सप्तमुखी रुद्राक्ष : यह सप्तमातृका तथा ऋषियों का प्रतिनिधि है। अत्यंत उपयोगी तथा लाभप्रद रुद्राक्ष है। धन-संपत्ति, कीर्ति और विजय प्रदान करने वाला होता है साथ ही कार्य, व्यापार आदि में बढ़ोतरी कराने वाला है। ज्योतिष की द‍ृष्टि से जब भी व्यक्ति का मारकेश समय होता है तब इसे धारण कराने पर आश्चर्यजनक परिणाम देखने में आए हैं। इसके धारक की मृत्यु शस्त्र से नहीं होती और वह अकालमृत्युहारी होता है। ऐसी भी मान्यता है कि इसे धारण करने वाले को धन तथा स्त्री सुख भरपूर मिलता है।

अष्टमुखी रुद्राक्ष : यह अष्टदेवियों का प्रतिनिधि है। ज्ञानप्राप्ति, चित्त में एकाग्रता में उपयोगी तथा मुकदमे में विजय प्रदान करने वाला है। धारक की दुर्घटनाओं तथा प्रबल शत्रुओं से रक्षा करता है। इस रुद्राक्ष को विनायक का स्वरूप भी माना जाता है। यह व्यापार में सफलता और उन्नतिकारक है। सट्टे, जुए तथा आकस्मिक धनप्राप्ति में पूर्ण सहायक, प्रत्येक प्रकार के विघ्नादि की शांति तथा प्रेम-प्रसंगों में इसका उपयोग होता है। इसे धारण करने वाले व्यक्ति पर किसी भी प्रकार के तांत्रिक प्रयोग का असर नहीं होता है। यह मुक्ति प्राप्त करने तथा कुंडलिनी जागरण में सहायक होता है।

नवममुखी रुद्राक्ष : यह नवशक्ति का प्रति‍‍निधि है तथा नवदुर्गा, नवनाथ, नवग्रह का भी प्रतीक माना जाता है। समस्त प्रकार की साधनाओं में सफलता तथा यश-कीर्ति की प्राप्ति में बेजोड़ है। शत्रुओं को परास्त तथा मुकदमे में सफलता के लिए भी इसका उपयोग किया जाता है। यह धारक को नई-नई शक्तियाँ प्रदान करने वाला तथा सुख-शांति में सहायक होकर व्यापार में वृद्धि कराने वाला होता है। इसे भैरव के नाम से भी जाना जाता है। इसके धारक की अकालमृत्यु नहीं होती तथा आकस्मिक दुर्घटना का भी भय नहीं रहता।

दशममुखी रुद्राक्ष : यह दस दिशाएँ, दस दिक्पाल का प्रतीक है। धारण करने वाले को लोक सम्मान, कीर्ति, विभूति और धन की प्राप्ति होती है। धारक की सभी लौकिक-पारलौकिक कामनाएँ पूर्ण होती हैं। सभी वि‍घ्न-बाधाओं से रक्षा कर तंत्र का प्रभाव नहीं होने देता। व्यक्ति समस्त संसार में प्रसिद्धी तथा सम्मान प्राप्त करता है।

एकादशमुखी रुद्राक्ष : यह एकादश रुद्र का प्रतीक है। उसे धारण करने पर किसी चीज का अभाव नहीं रहता तथा सभी संकट और कष्ट दूर हो जाते हैं। संक्रामक रोगों के नाश के लिए तथा स्त्रियों को धारण करने पर पुत्र प्राप्ति में निश्चित लाभ होता है।

द्वादशमुखी रुद्राक्ष : यह द्वादश आदित्य का स्वरूप माना जाता है। सूर्य स्वरूप होने से धारक को शक्तिशाली तथा तेजस्वी बनाता है। ब्रह्मचर्य रक्षा, चेहरे का तेज और ओज बना रहता है। सभी प्रकार की शारीरिक एवं मानसिक पीड़ा मिट जाती है तथा ऐश्वर्ययुक्त सुखी जीवन की प्राप्ति होती है। हृदयरोग में भी इसका प्रयोग किया जाता है।

त्रयोदशमुखी रुद्राक्ष : साक्षात विश्वेश्वर भगवान का स्वरूप है यह। सभी प्रकार के अर्थ एवं सिद्धियों की पूर्ति करता है। यश-कीर्ति की प्राप्ति में सहायक, मान-प्रतिष्ठा बढ़ाने परम उपयोगी तथा कामदेव का भी प्रतीक होने से शारीरिक सुंदरता बनाए रख पूर्ण पुरुष बनाता है। लक्ष्मी प्राप्ति में अत्यंत उपयोगी सिद्ध होता है। धारक की सभी इच्छाएँ स्वत: पूरी होती जाती हैं।

चतुर्दशमुखी रुद्राक्ष : यह साक्षात त्रिपुरारी का स्वरूप है। स्वास्थ्य लाभ, रोगमुक्ति और शारीरिक तथा मानसिक-व्यापारिक उन्नति में सहायक होता है। इसमें हनुमानजी की शक्ति निहित है। धारण करने पर आध्यात्मिक तथा भौतिक सभी प्रकार के सुखों की प्राप्ति होती है। धारक भी निरंतर उन्नति करता है।

गौरीशंकर रुद्राक्ष : यह शिव और शक्ति का मिश्रित स्वरूप माना जाता है। उभयात्मक शिव और शक्ति की संयुक्त कृपा प्राप्त होती है। यह आर्थिक दृष्टि से विशेष सफलता दिलाता है। पारिवारिक सामंजस्य, आकर्षण, मंगलकामनाओं की सिद्धी में सहायक है। धन-धान्य से परिपूर्ण करता है। लड़के या लड़की के विवाह में आने वाली बाधाओं को दूर कर उत्तम वर या वधू प्राप्ति में सहायक सिद्ध होता है।

गणेश रुद्राक्ष : प्राकृतिक रूप से रुद्राक्ष पर एक उभरी हुई सुंडाकृति बनी रहती है। उसे गणेश रुद्राक्ष कहा जाता है। यह अत्यंत दुर्लभ तथा शक्तिशाली रुद्राक्ष है। यह गणेशजी की शक्ति तथा सायुज्यता का द्योतक है। धारण करने वाले को यह बुद्धि, रिद्धी-सिद्धी प्रदान कर व्यापार में आश्चर्यजनक प्रगति कराता है। विद्यार्थियों के चित्त में एकाग्रता बढ़ाकर सफलता प्रदान करने में सक्षम होता है। विघ्न-बाधाओं से रक्षा कर चहुँमुखी विकास कराता है। यश-कीर्ति, वैभव, मान-सम्मान, प्रतिष्ठा में वृद्धिकारक सिद्ध होता है।

शेषनाग रुद्राक्ष : जिस रुद्राक्ष की पूँछ पर उभरी हुई फनाकृति हो और वह प्राकृतिक रूप से बनी रहती है, उसे शेषनाग रुद्राक्ष कहते हैं। यह अत्यंत ही दुर्लभ रुद्राक्ष है। यह धारक की निरंतर प्रगति कराता है। धन-धान्य, शारीरिक और मानसिक उन्नति में सहायक सिद्ध होता है। राजनीति‍ज्ञों, समाजसेवियों, व्यापारियों के लिए अत्यंत लाभप्रद सिद्ध होता है। उनके प्रभाव को बढ़ाने में सहायक होता है।

रुद्राक्ष धारण के नियम और ज्योतिषीय मत
1. सभी वर्ण के लोग रुद्राक्ष धारण कर सकते हैं। धारण करते समय ॐ नम: शिवाय का जाप करें। ललाट पर भस्म लगाएँ। अपवित्रता के साथ धारण न करें। भक्ति और शुद्धता से ही धारण करें। अटूट श्रद्धा और विश्वास से धारण करने पर ही फल प्राप्त होता है।
2. कभी भी काले धागे में धारण न करें। लाल, पीला या सफेद धागे में धारण करें। चाँदी, सोना या तांबे में भी धारण कर सकते हैं।
3. रुद्राक्ष हमेशा विषम संख्या में धारण करें।

एकमुखी सूर्य का प्रतीक सूर्य दोष शमन करता है।
द्विमुखी चंद्र का प्रतीक चंद्र दोष दूर करता है।
त्रयमुखी मंगल का प्रतीक चंद्र दोष दूर करता है।
चतुर्मुखी बुध का प्रतीक चंद्र दोष दूर करता है।
पंचमुखी गुरु का प्रतीक चंद्र दोष दूर करता है।
षष्ठमुखी शुक्र का प्रतीक चंद्र दोष दूर करता है।
सप्तममुखी शनि का प्रतीक चंद्र दोष दूर करता है।
अष्टमुखी राहु का प्रतीक चंद्र दोष दूर करता है।
नवममुखी केतु का प्रतीक चंद्र दोष दूर करता है ।
दशममुखी राहु-केतु, शनि-मंगल के दोष को दूर करता है।
एकादशमुखी समस्त ग्रहों,राशि, तांत्रिक दोषों को दूर करता है।
द्वादशमुखी समस्त ग्रह दोष दूरकर व्यक्ति में सूर्य का बल बढ़ाता है ।
त्रयोदशमुखी का पुरुष जनित दुर्बलता दूर कर शारीरिक-आर्थिक क्षमता प्रदान करता है।

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