Wednesday, April 27, 2011

रुद्राक्ष का महत्व


रुद्राक्ष धारयेद्बुध: के अनुसार ज्ञानी जनों को रुद्राक्ष धारण करना चाहिए। रुद्राक्ष को भगवान शिव की आंख कहा जाता है। त्रिपुर नामक दैत्य को मारने हेतु भगवान शंकर ने कालाग्निनामक शस्त्र जब धारण किया तभी अश्रु पात होने से रुद्राक्ष की उत्पत्ति बताई गयी है।

रुद्राक्ष एक अत्यन्त विचित्र वृक्ष है। संसार में यही एक ऐसा फल है, जिसको खाया नहीं जाता बल्कि गुद्देको निकालकर उसके बीज को धारण किया जाता है। यह एक ऐसा काष्ठ है, जो पानी में डूब जाता है। पानी में डूबना यह दर्शाता है कि इसका आपेक्षिक घनत्व अधिक है, क्योंकि इसमें लोहा, जस्ता, निकल, मैंगनीज,एल्यूमिनियम,फास्फोरस, कैल्शियम, कोबाल्ट,पोटैशियम, सोडियम, सिलिका, गंधक आदि तत्व होते हैं। रुद्राक्ष का मानव शरीर से स्पर्श महान गुणकारी बतलाया गया है। इसकी महत्ता शिवपुराण,महाकालसंहिता,मन्त्रमहार्णव,निर्णय सिन्धु , बृहज्जाबालोपनिषद्,लिंगपुराणव कालिकापुराणमें स्पष्ट रूप से बतलाई गई है। चिकित्सा क्षेत्र में भी रुद्राक्ष का विशद् वर्णन मिलता है। दाहिनी भुजा पर रुद्राक्ष बांधने से बल व वीर्य शक्ति बढती है। वात रोगों का प्रकोप भी कम होता है। कंठ में धारण करने से गले के समस्त रोग नष्ट हो जाते हैं, टांसिल नहीं बढता। स्वर का भारीपन भी मिटता है। कमर में बांधने से कमर का दर्द समाप्त हो जाता है। शुद्ध जल में तीन घंटे रुद्राक्ष को रखकर उसका पानी किसी अन्य पात्र में निकालकर पहले निकाले गए पानी का प्रयोग बेचैनी, घबराहट, मिचली व आंखों की जलन रोकने के लिए किया जा सकता है। दो बूंद रुद्राक्ष का जल दोनों कानों में डालने से सिरदर्द में आराम मिलता है। रुद्राक्ष का जल हृदय रोग के लिए भी लाभकारी है। चरणामृत की तरह प्रतिदिन दो घूंट इस जल को पीने से शरीर स्वस्थ रहता है। इस प्रकार के अन्य बहुत से रोगों का उपचार रुद्राक्ष से आयुर्वेद में वर्णित है।
रुद्राक्ष प्राय: तीन रंगो में पाया जाता है। लाल, मिश्रित लाल व काला। इसमें धारियांबनी रहती है। इन धारियोंको मुख कहा गया है। एक मुखी से लेकर इक्कीस मुखी तक रुद्राक्ष होते हैं। परंतु वर्तमान में चौदहमुखीतक रुद्राक्ष उपलब्ध हो जाते हैं।रुद्राक्ष के एक ही वृक्ष से कई प्रकार के रुद्राक्ष मिलते हैं। एक मुखी रुद्राक्ष को साक्षात् शिव का स्वरूप कहा गया है। सभी मुख वाले रुद्राक्षों का अलग-अलग फल एवं अलग-अलग धारण करने की विधियां बतलाई गयी हैं। राशि के हिसाब से भी रुद्राक्ष को धारण करने का महत्व दिया गया है। मेष व वृश्चिक राशि वाले को तीन मुखी, वृष व तुला राशि वालों को छह, मिथुन व कन्या राशि वालों को चार मुखी, कर्क को दो मुखी, सिंह को एक व बारह मुखी, धनु व मीन को पांच मुखी और मकर व कुम्भ को सात मुखी रुद्राक्ष धारण करना चाहिए। मुख के हिसाब से रुद्राक्ष धारण करने का पृथक-पृथक नियम बतलाया गया है। रुद्राक्ष एक दिव्य औषधीय एवं आध्यात्मिक वृक्ष है। इसलिए इसके धारण करने वालों को कई प्रकार की सावधानियां बरतने का उपदेश शास्त्र करते है। सदैव शुद्ध एवं पवित्रावस्थामें ही रुद्राक्ष को धारण करने का विधान है। रुद्राक्ष को रखने का स्थल शुद्ध एवं पवित्र होना चाहिए। घुन लगा, कीडों द्वारा खाया गया, टूटा-फूटा (खण्डित)या छीलकर बनाया गया रुद्राक्ष कभी धारण नहीं करना चाहिए। कभी-कभी रुद्राक्षों को आपस में जुडा हुआ भी देखा जाता है। जब दो रुद्राक्ष एक दूसरे से जुड जाते है। इन्हें गौरीशंकर कहा जाता है। अर्थात शिव एवं पार्वती का संयुक्त रूप। जब तीन रुद्राक्ष जुड जाते हैं तो इन्हें पाट कहा जाता है अर्थात् शिव पार्वती एवं श्रीगणेश, इस प्रकार का रुद्राक्ष देखने को कम मिलता है। रुद्राक्ष पर भगवान शिव के मन्त्रों का जप कर धारण करना चाहिए या शिवलिंग से स्पर्श कराकर धारण करना चाहिए। शिवलिंगसे स्पर्श कराने पर रुद्राक्ष का शक्ति कमल दल खुल जाता है। जो रुद्राक्ष धारण करने वालों को अत्यन्त लाभ पहुंचाता है।

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