Sunday, May 15, 2011

विवाह के आठ रूप



कर्तव्य और जिम्मेदारियों के पैमाने पर ही इंसान की सही परख और पहचान होती है। इन दायित्वों को समझ और आगे बढ़कर आत्मविश्वास व सक्षमता के साथ पूरा करने पर इंसान पद, सम्मान, भरोसा, सहयोग और प्रेम पाकर जीवन को सफल बना सकता है। व्यावहारिक जीवन में जिम्मेदारियों के निर्वहन का ही समय होता है - गृहस्थ जीवन। आम भाषा में इसे घर बसाना और चलाना भी कहते हैं।

हिन्दू धर्मशास्त्रों में इंसानी जीवन के लिए बताए वर्णाश्रम धर्म में भी शिक्षा के बाद गृहस्थ धर्म के पालन का ही महत्व है। इस धर्म के पालन के लिए विवाह संस्कार की परंपरा बताई गई है। हालांकि आधुनिक समय में विवाह की परंपराओं या जीवनसाथी को लेकर बड़े बदलाव दिखाई देते हैं। किंतु धर्मशास्त्रों में गृहस्थ जीवन में प्रवेश के लिए विवाह के आठ रूप बताए गए हैं।


यहां जानते हैं शास्त्रों में आए विवाह के ये आठ तरीके और उनके फायदे। इन तरीकों में से कुछ आधुनिक समय में भी देखे जाते हैं।
1. ब्रह्मविवाह - इस रीति से विवाह में वर को घर बुलाकर सम्मान के साथ गहनों आदि से सजाकर कन्यादान किया जाता है। इससे जन्मी संतान से दोनों कुटुंब की 21 पीढिय़ां पवित्र होती है। 



2. देव विवाह - यज्ञ, हवन के ज्ञाता और विद्वान ब्राह्मण को कन्यादान करना देव विवाह होता है। 



3. आर्ष विवाह - वर से एक जोड़ा गाय व बैल लेकर उसे कन्यादान करना आर्ष विवाह कहलाता है। इससे जन्मे पुत्र से अगली-पिछली तीन पीढिय़ां पवित्र होती है।



4. काय या प्राजापत्य विवाह - इस विवाह रीति में 'इस कन्या के साथ धर्म आचरण करो' ऐसा बोलकर पिता द्वारा विवाह की चाह रखने वाले वर को कन्यादान किया जाता है। इससे जन्मे पुत्र से आगे-पीछे की छ: पीढिय़ां पवित्र होती हैं। 



5. असुर विवाह - इसमें कन्या के पिता या परिजन को धन देकर वर कन्या से विवाह करता है। 



6. गान्धर्व विवाह - इस रीति से विवाह में वर व कन्या के बीच पहले से ही विवाह की आपसी सहमति होने के बाद विवाह होता है। 



7. राक्षस विवाह - जब किसी कन्या की इच्छा के विरुद्ध बलपूर्वक अपहरण कर उससे विवाह किया जाता है, तो वह राक्षस विवाह माना जाता है। 



8. पैशाच विवाह - कन्या के सोते समय उसका अपहरण कर उससे विवाह रचाना पैशाच विवाह होता है।

No comments:

Post a Comment