Saturday, March 3, 2012

बाहरी रिश्तों के समान ही हमें स्वयं से भी रिश्ता बनाना चाहिए

संसार में रहते हुए हम अनेक लोगों से रिश्ते बनाते हैं। हर रिश्ता एक दायित्व होता है। दायित्व बोध आध्यात्मिक जागृति के लिए भी आवश्यक है। जिस तरह हम बाहरी रिश्ते बनाते हैं, हमें स्वयं से भी अपना रिश्ता बनाना चाहिए। इस बात पर बराबर नजर रखनी चाहिए कि हमारे स्वयं से रिश्ते कैसे हैं। क्या हम उसका निर्वहन ठीक से कर रहे हैं? दरअसल स्वयं से रिश्ता बनाने के लिए अपने भीतर उतरना पड़ता है। अध्यात्म कहता है - मनुष्य भविष्य में झांकने में रुचि रखता है। भविष्य में चुनौतियां हो सकती हैं, लेकिन अनुभव नहीं होता। अतीत में स्मृतियां होती हैं, इसलिए अपने अतीत से अनुभव प्राप्त करना चाहिए। अतीत का अनुभव हमें न सिर्फ पीछे ले जाता है, बल्कि अपने भीतर उतरने में भी मदद करता है। मनुष्य अपने भीतर जाकर ही जान सकता है कि यहां हमारा रिश्ता अपनी चेतना से हो जाता है। ध्यान रखें, भीतर उतरते समय अहंकार एक बाधा है, इसे जरूर दूर किया जाए। बाहरी रिश्ते निवेश के लिए होते हैं और भीतर का रिश्ता बोध के लिए बनता है। जैसे ही हम स्वयं से रिश्ता बनाते हैं, हमारे आसपास एक दैवीय शक्ति सुरक्षा के लिए सक्रिय हो जाती है। ध्यान हमारे लिए सरल होने लगता है। हमें बाहर की स्थितियों से विराम मिलने लगता है, हमारी आत्मा को उसकी खुराक प्राप्त हो जाती है। भीतर उतरते ही हमें अपने जीवन में कुछ परिवर्तन महसूस होंगे। कुछ लोग इन परिवर्तनों से घबरा जाते हैं, लेकिन ये परिवर्तन एक उपलब्धि है। यह हमारे विश्वास को बढ़ाएंगे। हमारे आसपास सौंदर्य, शांति और सुख की वृद्धि करेंगे। इसलिए इस रिश्ते को जीवन में जरूर पैदा करें। 

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