सबसे बड़ी विजय है अपने स्वभाव का स्वामी बनना। इसका अर्थ है जीवन पर स्वयं का नियंत्रण। अभी हमारा जीवन दूसरों से संचालित है। दूसरों की टिप्पणियों और राय से हमारा दिनभर तय होता है। हमारे मूड का कंट्रोल दूसरों के हाथों में रहता है। इसका कारण है मन पर हमारा ज्यादा टिकना। मन को दूसरों में रुचि होती है। बुद्धि को व्यवस्थित रखना हो तो ज्ञान काम आता है। भक्ति से भावनाएं संभाली जाती हैं, लेकिन मन को नियंत्रित करना हो तो साधना करनी पड़ेगी। केवल साधना से भी काम नहीं चलेगा। दरअसल मन का सबसे अच्छा नियंत्रण ध्यान या मेडिटेशन द्वारा ही होगा। इंद्रियों और मन को प्रशिक्षित करने की क्रिया ध्यान है। हमारी आंतरिक बेचैनी का केंद्र मन ही होता है। भारतीय संस्कृति ने साधना के जितने रूप बताए हैं, उनमें एक है जागरण। यह भी एक तरह की साधना है, जिसमें श्रवण द्वारा मन को नियंत्रित किया जाता है। आजकल भक्ति की दुनिया में जागरण का बहुत जोर है। जागरण को केवल एक रतजगा न मानें। ये तो परमपिता और जगद्माता की गोद में समय बिताने जैसा है। जागरण एक तरह का उपवास है। इसका शाब्दिक अर्थ है परमात्मा के पास बैठना। उपवास में हम इंद्रियों पर अपने नियंत्रण के प्रयोग करते हैं। उपवास का साधारण अर्थ समझा जाता है कि अन्न का भोजन नहीं करना, यानी पेट भरने के मामले में नियंत्रण। लेकिन मामला केवल उस उदर का नहीं है, जहां भोजन भरा जाता है। सच तो यह है कि हर इंद्रिय का अपना पेट होता है, जो उसके विषय से भरता है। जागरण करें या उपवास, अभ्यास यह करें कि मन पर नियंत्रण सधे। यहीं से शांति व सुकून मिलेगा।
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